आदमी का जहर | Admi Ka Jahar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)তাহা
তালি
হা
তাহা
হাটি
बाकागवाणी हैं। लीजिए অভ্র জান মাই নানক भायोजन के
सन्तर्मत जरलजी का लिखा हुमा यह नाटक सुनिए टूट
आदमी |
[ दरवाजा सब्सटाने की ध्वलि |]
जाने क॑ चके गये ह ? जानते है आजकल तकाजे वालो का
ताता तगा रहता है, फिर भौ आप हं कि व गायव | आज इस
सस्या कौ भीटिट् हैं। कल गोप्ठी है । फला वमार है । टिर्का के
घर पादी ह । कितना वरदाइत क ? करटा तक वरदाश्त करू ?
[ दरयाजा खटसटाने को ध्वनि ]
कौन है ? बोलते वयो मही ”? आधी रात को खट-खट लगा रखा
है। कह तो दिया महिमजी का कुछ ठिकाना नहीं कब आबव,
[ दरवाजा स्योरते हए ] जरे यह् तो आपी रै, आन दूर्तनी
जल्दी ! मैं ने तो तय कर लिया था कि आज दरवाज़ा-नहो
सोटेंगी । श्रम
तुम्हारे तय करने से वया होता हैं? मेरी किस्मत तो तेज़ हैं,
जानती हो महिम फो किस्मत जहाँ जोर मानो में खराब हैं. ब्रहाँ
एस माने मे तेज़ भी ।
एऐ भगवान् । कहाँ है इन की किस्मत जो तेज होगी? ` `
भगयान् देचारे को कोस रहो हो ! कोयो, ठोक हो हैं। भई, मैं
तो विसी वो भी कोसने फी स्थिति में नही हूँ । भगवान ने तो
भें साप न्याय ही किया है ! हाँ, अन्याय तुम्हारे साथ हुआ है ।
गर्म षे साय एस मानी में कोरः अन्याय नही हुआ हूँ ।
शाप वा मतर्द ९ |
गये एएि, मेरा भाग्य दो दश हो अच्छा या हर हालत में
3८ण धा जे तम्तरी-#ंदो परी मिल गयो। रहो तम्हारो
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