श्री जवाहर किरनवली पार्ट 14 | Shri Jawahar Kirnawali Part -14 ( Samvatsari)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य श्री जवाहर - Acharya Shri Jawahar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कार्तिक शुक्ला 43
उपवास शरीर और आत्मा-दोनो के लिए लाभप्रद है। हमेशा पेट मे
आहार भरते रहोगे और उसे तनिक भी विश्राम न लेने दोगे तो पेट मे विकार
उत्पन्न हुए बिना नही रहेगा। अतएव शरीर और आत्मा को स्वस्थ रखने के
लिए उपवास अत्यन्त उपयोगी है।
लोग सासारिक सुख को पकडने का जितना प्रबल प्रयत्न करते है,
सुख उतनी ही तेजी के साथ उनसे दूर भागता है।
साकल की एक कडी खीचने से जैसे सारी साकल खिच आती है,
उसी प्रकार परमात्मा की कोई भी शक्ति अपने मे खीचने से समस्त शक्तिया
खिच आती है।
तुम मानते हो कि हम महल ओर घन-दौलत आदि के स्वामी है, पर
एक वार एकाग्र चित्त से सोचो कि वास्तव मे ही क्या तुम उनके स्वामी हो?
कही वह तुम्हारे स्वामी तो नही हे? तुम उनके गुलाम ही तो नही हो?
जो निर्बल है वही दुख का भागी होता हे । बलवान् को कोन सता
सकता है? बेचारे बकरे की बलि चढाई जाती है। शेर की बलि कोई नही
चढाता।
कार्तिक शुक्ला 14
सस्कार की दृढता के कारण माता के साथ दुराचार सेवन करने का
स्यप्न मे भी विचार नही आता, यही सर्कार अगर पर-स्त्री मात्रे के विषय
मे दृद हो जाय तो आत्मा का बहुत उत्थान हो|
वीर्य मनुष्य का जीवन-सत्व है। वीर्य का हास होने से जीवन का
एस होता है। ऐसी स्थिति मे वीर्य का दुरुपयोग करने से बडा दुर्भाग्य और
पयो कहा जा सकता है?
उपास्य कौ उपासना के लिए उपासना को साधनो का अवलम्बन
৬7 परता दे । अत्मा प्राणो को व्यर्थ न मान कर अगर ईशवर-उपसना का
रप माता तो प्राण ईश्वर ক प्रति समर्पित रहेगे ¦ ओर जद समस्त प्राण
रेश्यर ऊ एति समपित रहे तो मुखमडल पर ऐसी दीप्ति -तेजस्विता प्रकट
न यः কায শি হাহ क (ए ररभरसत तत्न तिने মি
उच्ाफ उात কাহার ক জল ला नित्ये गात तानि ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...