जर्मनी का इतिहास | Jarmani Ka Itihas

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Jarmani Ka Itihas by श्यामविहारी मिश्र - Shyamavihari Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हल चाष एवं प्रिंटर और प्रकाशक महाशयों के! थी हादिक धन्यवाद देते हैं जिन्होंने इस इतिहासमाला की इस प्रथम पुस्तक के प्रस्तुत करते में अपने उत्साह और हिन्दी प्रेम का पूरा परिचय दिया है। किसी समय हमारा देश ससप्त संसार का रिरोमणि था। शोक ! आज उसकी कुछ और ही दशा है । हिन्दो के सुप्रसिद्ध छेखक बा० हरिश्चन्द्र ने अपने एक नाटक में भारतवर्ष के प्राचीन मैरवांश के बड़ी उत्तमता से एक चापाई में वशित किया है। बह यह हैः-- “फिनिक मिसिर सोरीय युनाना। मे पण्डित छे भारत ज्ञाना ॥ | केसे सारगिंत शब्द्‌ हैं | वास्तव में किसी समय हिन्दुस्तान में यही योग्यता थी कि छोग इसे आदुश समान कर इससे शिक्षा अहण करते थे। परन्तु अब वे दिन न जानें कहाँ चले गये। मय्योदा-पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी, भीष्म, द्रोण, अर्जु न, कालिदास, महारानो लक्ष्मीबाई आदि' की पसविन वीरसिंहिनी यह भारत- भूमि आरत दाकर निजेन बने पूट জু कर रो रही है। इसी कारण इस बात. की बड़ी आवश्यकता है कि आधुनिर्क श्रवीरों क विक्रमेदाहरण वीरप्रसविनी के समक्ष रचखे जायें, जिनके छाया इसे मात्यूम हे। कि ये नये नये देश कैसी उन्नति कर रहे हैं, বা क्या स्वया इसे जे किसो समय में संसार की आदर्श थी, फिर अपने खाये हुए गौरव के! हस्तगत कर लेने में कई सन्देह है। जमती भी कैसा प्रभावशाली देश है रैर उस समयोचित कसा केसो उच्चतिरयां इई है इस बात का दिग्द्शन इस छोटे अन्य ॐ अवलोकन करने से हा जायगा जहां शार्लमेन के समान २




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