भूषण ग्रंथावली | Bhushan Granthawali

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Bhushan Granthawali by श्यामविहारी मिश्र - Shyamavihari Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ £७ ) कहते हुए दशक के समचत छुद न० ४ ध ५ एवं दो चार अन्य कवित्त, जो श्यप्राप्य हूँ, तत्काल पढ़े। छुद नं० ३ में उन्द्दोंने छघचसाल जी को “खाल छितिपाल” क्‍या दी ठीफ फह्ा है, फ्योकि उन महाराज फी अवस्थ। उस समय फेघल २७, रए साल की थी । वैसे दी छुदू न० ४ घ ५ में भी किसी घटना विशेष की बात न कदकर यो हो छप्तशाललीफो प्रशथा को गई है। चन्नसाल ने तप तक फोई ऐसी यडी लडाई नदीं जीती थी जो सलदेरि परनालो इत्पादि युद्धों के द्वणा और वर्ण॑नफर्ता भृूषणजी की नियाद्द में जेंचती। बुँदेला मद्दाराप् की उस खम्य भूषणजी ने चत्रसाल दाडा ( भद्दाराज बूँदी ) से तुलना करके भी भानो प्रशसा दी फी है, क्योंकि तब तक धास्तव में चे ४२ थुद्धों में सम्मिलित रदने और लडनेवाले घीरघर हाडा महाराज के बराबर फदाएि न थे, यद्यपि पे भागे चल कर चूँदीनरेश से घहुत अधिक बढ़ मए | दिन अपने घर रदऋण भूषणजो ने कमाऊंँ मधहारान फे थद्दाँ जाकर स्कुट छद न० ९ पढ़ा। महाराज ने सममक्ता कि भूषणण्ी फे सम्मान को जो बातें शिवाजी फे संयध में उन्दोंने जुनों, पे शायद ठीक न पोगी। लो थे कविजी की पैसछी सातिर 'धात किए दिना ही उन्हें एक दक्ष रुपए का दान देने लगे । तय सृषणजो ने कद्दा कि थव रुपए को चाद्व नहीं; दम तो फेचल यह देखने आप थे कि मदारल शिवराज का यश यहाँ तक पहुँचा है था नदीं। यद्द कद भुपणजों रुपया लिए ग्रिना




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