भारतीय धर्म और दर्शन | Bharatiy Dharm Aur Darshan

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Bharatiy Dharm Aur Darshan by श्यामविहारी मिश्र - Shyamavihari Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दू घममे के आंठ युग री । सिद्धास्तों की भी स्थापना पवं दृद़वा इसी शुभ काल से हुई। साया का विचार पहले पहल श्वेताश्वतर में आया। संसार माया है और ईखर भाभी । क्ठोपनिपत्‌ में समझाया गयांकि बिना सांसारिक प्रलोभनों को छोड़े कोई ब्रह्म विद्या को प्राप्त नहीं हो सकता । ऐतरेय और शतपथ मुख्य जाह्मण ग्रम्थ है। पाश्वात्य पंडितों से उपनिपदों के ससयानुसार चार भाग फिये हैं। पहली प्राचीनतम कक्षा में शृहद।रण्यक, छान्‍्दोग्य, ते त्तिरीय, ऐतरेय और कौशीर्ताक रक्खे गये हैं। प्रश्न, मुंडक और केन के कुछ भाग इन्हीं के पीछे आते हैं। दूसरी कक्षा में कठ, ईश, श्वेताश्ववर और मद्दानारायण हैं तथा तीसरी मे मेत्राथणीय अथच माण्डूक्य, और चौथी में अथवेवेदीय उपनिषत गण। इस काल तक बेप्णव भाव कम था ओऔर शेब की प्रधानता थी । बुहृदारण्यक में याज्जवल्क्य ने सम्राट जनक से संवाद में सिद्ध किया है कि ईश्वर का अन्वयात्मक (गुणारोपण बाला) घिचार असिद्ध है, क्योंकि उसका शुद्ध वर्णन व्यतिरेंक ( चह क्या नहीं है ) द्वारा ही किया जा सकता है । उपनिपषकों में परमात्मा अस्पृरय, अपरतन्त्र, अचल ( बृहदारण्यक ), अकाय, अत्रण, अस्नाबिर (नस नाड़ियों से परे) ( ईशोपनिपत्‌ ), अशब्द, अस्पर्श्श, अरूप, शअ्रव्यय, अरस, अनादि, अनन्त ( कठोपनिपत्‌ ), अच्छाय, अशरीर, अलोहित ( प्रश्नोपनिपत्‌ ) अदृश्य, अ्रभाद्य, अगोन्न, अवर्ण, अचन्ु, अशोत्र, अपाणिपाद, अमृत, अज, शअ्रप्राण, विरज, निप्कल ( कला रहित ), अमन, अदार ( मुडक ) आदि है। अन्वयवाची शब्दों में वह शुद्ध, आँख की आँख, कान का कान, सन का मन ( ईशोपनिपत ) नित्य, विछ्छु, सर्वगत, सूच्म, भूतयोनि, शुश्र,रक्य चरण, अचिन्त्य




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