राजनीति | Rajniti

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Rajniti Bhasha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजनीति । पु पक्षिन आय अपने वाठकर्म के 'हाड़ चाम्‌ /गीधके खोड़र समीप परेपाये । तब .उननिं 'जान्यो ' कि. हर्मारें छोना या पापी -विद्वा- सघाती चाण्डाल ने खाये 1: ऐसे समझि,'संबनि ,मिल-गीघको जीवसों मास्थो ताते हों कहतुद्दीं कि बिनजाने मित्राई क़बहूं न हा ५ दि थ्् करिये यह. बात सुनि सवार कोघकरि बोल्यो, मित्र जा दिन तुम हुरिण सो सित्राई करी .ता -दिन्न.यह तिहारो कुछ स्वभाव कहा जानतुद्दो जो मिठबेव्यो । यातें. आपनो 'परायो: कहनो सूखनि कॉकामहै । पण्डितकों तो सब आपनेही हैं जेंस ऋग हमारी सित्र तेसें तुमहूं । अरुमलौुस तो व्यवहारहीते जा्योंजातुद्दे । हरि- णकंही सित्नविवादक्यांकरतुहदो .। जितेकसिलरहें तितेकहीमले काककह्दी भाईतुमजानो इतेकसें सब आपने आपने उदरकी चिं- ताकोंगये अरुसाझकों आयइकटेमये 1 :याही भांति वहांरहनिखागे कितेकदिनपाछे स्यारने हरिणको एक पाय कह्यो.सित्र हैं ति- दौरेकंये आछोहस्थो कोमक यवकी खेत देखि आयोहों । जो मेरी गेल चछो तो दिखाऊँ। यारीतिकपट्करि'वाको 'कुमागसेंट्यायो । अस्वहू कुविषनकोसारथों छोभकरि वाकेसंगही उठिधायो। ऐसे नितवाके संगंजायजाय खायख्राय आवे। एंकदिन 'वाखेतके रेख- वारेने हरिणको आवतुदेखिं फांदरोप्यो । उ्योही यह त्वरबेको थे- न्यो त्योही बंझवो तब सन में कहनिठाग्यो कि'मिन्न बिन मोहिया संकठते की निकारि, है। अरुददतस्पारवाको 'फैंस्योदेखि नाचिनोचि मनमें कहनिठांग्यो किंसेरे कपटको फालें आज, सिलैगो जवब॒रख- बारो याकोमांस ' भक्षणकरेगो तो.-हांड्चांससें- जो “मांसठपट्यो रहेगा सो हों खाएँगो । 'यहतो यों: विचारमें नाविकूदिरह्यों है। ' अरुस्रगनेजान्यो, यह मेरोई दुःख देखिव्याकुलुंद्दो हाथपावपटक- तुद्दे । पर यह न.जान्यों कि 'दामकोछोमी * नुवाकीभांति कठा करतुहै । आगे स्थारकी दरादिखें श्गकही भाई मेरे निमित्त तू एती खेद क्योंकरतु है. कद्योहेआपदा्े'कामंआते.सो हितू रणमे ्ू जूझे सोह्ार दरिडेमें खीकी परी्ता लीजिये दुशखमें वन्धु जांचिये




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