उत्तरी भारत का इतिहास | Uttari Bharat Ka Itihas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Uttari Bharat Ka Itihas by प्रो हेतसिंह वघेला - Prof. Heatsingh Vaghela

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रो हेतसिंह वघेला - Prof. Heatsingh Vaghela

Add Infomation AboutProf. Heatsingh Vaghela

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
राजपुत्तों की उत्पत्ति 'पतन के बाद भी सातवीं शताब्दी तक क्षत्रियों का अस्तित्व था । दूसरी के राजा खारवेल के उदयगिरि--लेख में 'कुसंब जाति के क्षत्रियों' का उल्लेख..है, इसी अवधि के सासिक पाण्डव गुह्टा--लेख में 'उत्तमभाद्र क्षत्रियों' का वशुंन है, गिरिनार 'पव॑त लेख में 'यौघेयों' को क्षत्रीय कहा गया है तया तीसरी सदी के नागाजुन कोंड लेख में इक्वाकुवशीय राजाओं का उल्लेख है । यद्यपि डॉ० श्रोका के विदेशी मत के विपन्न में ये तकें महत्त्वपूर्ण हैँ किन्तु जो विदेशी भारत में श्राकर वस गए उनका भारतीय समाज में विलीनीकरण कंसे हुमा, यह प्रश्न श्रनुत्तरित रह जाता है । डॉ० गोपीनाथ शर्मा का मत है--“इस प्रश्न को हल करने में हमें यही युक्ति सहायक होगी कि इन विदेशियों के यहाँ श्राने पर पुरानी सामाजिक व्यवस्था में प्वश्य हेर-फेर हुआ ।” डॉ० स्मिथ” श्री कक से सहमत होते हुए यह मानते हैं कि पृथ्वी स्मिथ” थी ऋक से सहमत होते हुए यह मानते हैं कि पुथ्वीराज रासो में जिन वार राजपूत वंशों की से उत्पत्ति बतलाई गई है, वे_सभी विदेशी सकल रूप रजत, बनाया गया। दक्षिण के राजपूतों की कि | श्री डी. श्रार. भण्डारकर पं रोजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं । नीलकण्ठ शास्त्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पविज्नीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पुवें भी इसका -प्रमाण तमिल काव्य “पुरनाचूरु” में मिलता है। श्री वागची गुर्जरों को मध्य एशिया की. जाति _'वुसुन' अववा “गुसुर' मानते हैं क्योंकि तीसरी शत्ताद्दी के श्रवोटावाद लेख में “गशुर' जाति का उल्लेख है ॥ जैक्सन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से श्रग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई थी । पंजाब तथा खानदेश के गुर्जेरों के उपनाम पैवार तथा चौहान पाये जाते हैं । यदि प्रततिह्वार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आए जिसका नेतृत्व युजर कर रहे थे। श्री ने इस मत से सहमत होते हुए एक तत्कालीन अरब यात्री के लेख के श्राधार पर यह तथ्य प्रकट किया है कि 'खजर' जाति जौजियन थीं जो दक्षिण श्रनभिनियनों के साथ पाँचवीं शताब्दी के भ्रन्त में श्नपने राजा वखतंग के नेतृत्व में पुर्वे की श्रोर श्रमियान को गई । यह खजर जाति ही गुर्जर थी.। करमिघम गुर्जरों को यूची तथा होनरले उन्हें तुके मानते हैं । श्री भगवानलाल का मत है कि सम्भवत: कमिस्क के समय में युजेरों ने भारत में प्रवेश किया । पक एप कर वीर विदेशी उस को अस्वीकार कर कद समझो की चैदिक आार्यी से उत्पस्ति-मानते-हैं-1-..इसके लिए वे पहला तर्क यह देते हैं कि केवल वैदिक ्रार्यों की सन्तान ही श्रपने धर्म की रक्षार्थ विदेशी श्राकान्ताओं से युद्ध कर 1. दा. राव : लिए ए वपहीव (0. 2228-29) 2. 0. पार्क : साधणिएं ए पता, दी (छ. 7)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now