राजस्थानी का इतिहास | Rajasthan Ka Itehas

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कालूराम शर्मा - Kaluram Sharma

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जेम्स टॉड - James Tod

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजपूताने का भूगोल 5 वाली छोटी छोटी नदियों ध्रौर उदयपुर की. भीला से निवलने वाली बेडच मदी वा जल लेवर इसमें भरा मिलती है । यह वारहा मास वहने वाली नदी है 1 मेवाद- चदयपुर की. दक्षिणी सीमा श्रौर वरोली की ऊची भूमि को सीचने के वाद यह (वनास) नदी रामेश्वर के समीप चम्वल से मिलने मे निमित्त दक्षिण को मुड॒ती है । चम्बल सहख्रो चकवर साने वे वाद इटावा श्रौर हालपी वे मध्य यमुना से मिल जाती है । छोटे छोटे घुमावो को छोड कर चम्वल की लम्पाई 500 मील से श्रधिक होगी । मरस्थल वी मनोहर वस्तु सारे जल वाली लूनी नदी है, जो ग्रवली से निकल बर प्रपनी शासाम्ों सहित जोधपुर राज्य के सर्वोदाम भाग को उपजाऊ बनाती है भ्रौर वालू के उस बढ़े मदान की सीमा को सदा श्रपना स्थान बदलने के लिए स्पषप्टता स अकित वरती है । मरस्थल का ही प्रपश्र श 'मारवाड' है । पुप्कर श्रौर प्रजमेर बी पवित्र भीलो तथा परवतसर से निवलन वाली लूनी नदी की लम्बाई उसकी झधित दूरवर्ती शापा से लेवर उसके पश्चिम के विस्तारयुक्त खारे दलदल वाले मुहान तक 300 मील से कुछ प्रघिव है 1 सिकदर वे इतिहासवारा ने श्रपनी पुस्तका में एरिनस शब्द लिसा है । वह *रण' श्रथवा रिण' वा भ्रपश्र श विदित होता है । उसका प्रयोग श्रव तक वडे दलदल व लिए किया जाता है, जो लूनी नदी तथा घाट के दक्षिणी मरस्थल से वहवर झाने वाली वसे ही खारी जल से पूण नदिया के बहाव की मिट्टी से बना है । यह रण 150 मील लम्बा है ब्ौर मुज से बलियारी तक उसवी म्रधिक से श्रघिव चौड़ाई 70 मोल के लगभग है । इस खारे दलदल के मध्य में एक परथक मनोहर भूमि है श्रौर यात्री लोग इसी तरफ से रण को पार करते है । गर्मी के दिनो मे उसकी धोखा देने घाली सतह पर जिसमे घोर भयानक रेती भरी हुई है, सारी सून (लवण) की एवं वड़ी उज्ज्वल पपड़ी के सिवाय श्रौर कुछ दिखाई नही देता । वर्पा ऋतु में वहा मला ग्रौर खारी दलदल हो जाता है। इस खारी दलदल वे सूखे किनारा पर मरी- चिका भ्रम का दृश्य विलक्षण रूप से दिखाई देता हं। मसस्थल मे प्राय ऐसे दश्य बहुत दिखाई देते हैं, प्रौर जहा विशेषकर लवरा की पपड़ियाँ होती है, वहा पर यह दश्य भ्रघिव दिखलाई देते हैं । इस रेतीले प्रदेश का श्रारम्भ दक्षिण मे लूनी नदी के उत्तरी किनारे से श्रौर छूव मे शेखावाटी की सीमा से होता है । यह रेतीले मदान ज्यो ज्यो पश्चिम की ओर बढोगे त्यो त्यो परिग्गाम में विशेष यढते जायेंगे । वीकानेर, जोधपुर श्रौर जसलमेर- थे रेत के हो मदान मे हैं । इस देश का सम्पूण यह विभाग रेतीले मेदान के श्रव लम्ब वाला है, जितने कुए जोधपुर से श्रजमेर तक खुदाये गये सवमे ही एक प्रकार का रेत, ककर श्रौर खडिया मिट्टी निकली 1 जसलमेर के चारो आ्रार भी मरस्थल है श्ौर जिसमे गेहू, जौ तथा चावलर्ड उपनजते हैं । राजधानी के समीप के इस क्षेत्र को मर मध्य की उवरा भूमि कहा जाय




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