राजस्थानी लोक कथाएँ | Rajsthani Lok-kathayen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजस्थानी लोक-कथाएं दे # सियां जी की फारसी एक सियाँजी फ़ारस गये और वहाँ टूटी-फूटी सी फारसी वोलो जान गए 1 घर आयें तो उन्होंने घर वालों पर रोब जमाने के लिए फ़ारसी छॉटनी शुरू की वे अब पानी को पानी न कहकर आब कहने छगे । लेकिन घर का कोई भी आदमी कुछ समझता न था । फल यह हुआ कि मियाँजी अपने ही घर में आब-आब करते हुए प्यास के मारे मर गए और पानी उनके सिरहाने पड़ा रहा-- फारस गया फारसी पढ़ आया बोले अट पट बाणी । आब आब कर सर गया सिरागे घरयों पाणी ॥। मियाँजी फारस गये और फारसी पढ़ आये । अब वे अटपटी बानी बोले लगें । फल यह हुआ कि वे आब आब करते मर गये और पानी सिरहाने रखा रह गया के गं क बलूं ? एक गाँव में सब मुसलमान ही मुसलमान रहते थे । गाँव में एक भी घर हिन्दुओं का न था इसलिए गाँव में कोई हिन्दू आता तो उसे खाने-पीने को कछ भी न मिलता । गाँव के लोगों ने सोचा कि यह तो बड़ी बुरी बात है कि कोई बटाऊ आए और निराहार चला जाए । ऐसा सोचकर उन्होंने एक मुसछमान औरत को ब्राह्मणी बनाकर एक झ्ञोंपड़ी में बिठा दिया । गाँव के मसल- -मान वहीं पानी के घड़े भरकर रख देते -और वह ब्राह्मणी आने वाले हिन्दू अतिथि को रोटी बना देती । एक दिन एक काशी का पंडित वहाँ आया और नहा धोकर पूजाःपाठ करके जब जोमने बैठा तो वह ब्राह्मणी उसके पास आकर बंठ गई और बोली कि तुम समक्षदार आदमी से लगते ह्दो अतः तुम्हें एक बात पूछती हुँ । पंडित ने कहा कि पूछो । तब उस स्त्री ने अपनी सारी वात बताई और पंडित से पूछा कि अब मैं अपनी लड़की की निकाह करूं या उसके फेरे फेरूँ ? पंडित को उसकी बात सुनकर बड़ी




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