प्रबन्धकोश | Prabandhkosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रास्ताविक वक्तव्य ।
६१. प्रबन्धपोश - परिचय
৮০ नामका यह ग्रन्थ--जिसमें २४ प्रबन्ध होनेके कारण इसका दूसरा, ओर प्रायः विशेष प्रसिद्ध
ऐसा, नाम चतुर्विशति-प्रबन्ध भी है---किम्बदन्ती-मिश्रित एक अद्ध ऐतिहासिक ओर दूसरा अद्धे छोक-
कथात्मक निबन्ध-सट्ठडह है | इसमें जिन २४ व्यक्तियोंके या प्रसिद्ध पुरुषोंके प्रबन्ध गून्थे गये हैं, उनमें से,
प्रन्थकार-ही-के कथनानुसार, १० तो जेनधर्मके प्रभावशाली आचाये हैं, ¢ संस्कृत भाषाके सुप्रसिद्ध कवि-पण्डित है,
७ प्राचीन अथवा मध्य-कालीन भश्रसिद्ध राजा हैं, ओर, ३ जेनधमानुरागी राजमान्य गृहस्थ पुरुष हैं ।
आचाय भद्रवाहुसे लेकर हेमचन्द्रसूरि तकके जिन १० आचार्योका वर्णन इसमें दिया गया है वे; तथा हे,
हरिहर, अमरचन्द्र आर मदनकीर्ति-ये 2 कवि-पण्डित, निस्सन्देह ऐतिहासिक पुरुष हैं सातवाहन आदि जिन ७
राजाओंका चरित-वर्णन इसमें ग्रथित हे, उनमें से, अन्तिम दो-अथोत् लक्ष्मणसेन ओर मदनवर्मा-का समय मध्य
कालका उत्तर भाग होनेसे उनके अस्तित्व ओर समयादिका सप्रमाण उल्लेख इतिहासके ग्रन्थोमें से मिल सकता है ।
वत्सराज उदयन, भारतीय इतिहासके प्राचीन युगमें हो जाने पर भी, महाकवि भास आदिके नाटकादिक ग्रन्थोंमें
अमर नाम प्राप्त कर लेनेके कारण ऐतिहासिकोंमें यथेष्ट परिचित हे । सातवाहन ओर विक्रमादित्य, भारतीय साहिदय
ओर जनश्रुतिमें अत्यन्त प्रसिद्ध होने पर भी, वे कोन थे ओर कब हो गये-इस विपयमें पुरातत्त्ववेत्ताओंमें अत्यन्त
मत-वेविध्य है | तथापि, वे कोई ऐतिहासिक पुरुष जरूर थे, इतना स्वीकार कर लेनेमें कोई आपत्ति नहीं की जा
सकती । वङ्कचृल राजाके ऐतिहासिकत्वके लिये इन अ्रन्थोंकोी छोड कर, और कोई अधिक वैसा इतिहास-सम्मत प्रमाण
अभीतक ज्ञात नहीं हुआ । अत एवं उसके अस्तित्व-नास्तित्वके वारेमें विशेष कुछ कहा नहीं जा सकता । नागाजुनका
जो वर्णन इस संग्रहमें-अथवा इसके समान-विषयक अन्य अन्य ग्रन्थोंमें-दिया हुआ मिलता है, उससे तो, उसके
कोई राजा या राजपुरूप होनेकी वात ज्ञात नहीं होती । प्रबन्धगत वर्णनसे तो वह कोई योगी या सिद्धपुरुष ज्ञात
होता हे। तो फिर ग्रन्थकारने उसकी गणना राजा या राजपुरुपके रूपमें किस आशयसे की है सो ठीक समझमें नहीं
आता । सम्भव है, राजपुत्र ( आधुनिक राजपूत ) रणसिंहकी पत्नीके गर्भमें जन्म लेने-ही-के कारण उसकी गणना
राजवगेमें की गई हो। नागाजुनकी कथा भी ऐतिहासिक दृष्टिसे उतनी ही सन्दिग्ध है जितनी सातवाहन ओर विक्रमकी
है । तथापि, वह भी एक ऐतिहासिक व्यक्ति अवश्य थी इतना मान लेना इतिहासके विरुद्ध नहीं कहा जा सकता।
राजमान्य जेन गृहस्थोंमें आभड জীহ वस्तुपाल सुप्रसिद्ध ओर सुज्ञात व्यक्ति हैं । परंतु, काश्मीरनिवासी संघपति
रत्न श्रावककी कथा, इतिहासके विचारसे, वेसी ही अज्ञात है जैसी वह्कचूछकी कथा है ।
५२, प्रबन्धकोशके समान-विषयक अन्य ग्रन्ध
जिनप्रभसूरि रचित विविधतीर्थकस्पकी प्रस्तावनामें दमने सूचित कियाद कि-विस्तृत जेन इतिदासकी रचनाके
लिये, जिन अ्न्थोंमें से विशिष्ट सामग्री प्राप्त हो सकती है, उनमें (१) प्रभावकचरित, (२) प्रबन्धचिन्तामणि,
(३) प्रबन्धकोक्च, ओर (४) विविधतीर्थकल्प-ये ४ ग्रन्थ मुख्य हैं। ये चारों ग्रन्थ परस्पर बहुत कुछ समान-
विषयक हैं ओर एक-दूसरेकी पूर्ति करनेवाले हैं ।” प्रबन्धकोश इन चारोंमें कालक्रमकी दृष्टिसे कनिष्ठ यानी सबसे
पीछेका है। इस क्रममें, श्रभावकचरित सबसे पहला [ वि० सं० १३३४ ], प्रबन्धचिन्तामणि दूसरा [ वि० सं०
१३६१ 1 विविधतीर्थकल्प तीसरा [वि० सं° १३८९], ओर प्रबन्धकोश्च चौथा [ वि० सं“ ९४०५ ] स्थान रखता
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