प्रबन्धकोश | Prabandhkosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रबन्धकोश  - Prabandhkosh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

Add Infomation AboutAchary Jinvijay Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ग्रास्ताविक वक्तव्य । ६१. प्रबन्धपोश - परिचय ৮০ नामका यह ग्रन्थ--जिसमें २४ प्रबन्ध होनेके कारण इसका दूसरा, ओर प्रायः विशेष प्रसिद्ध ऐसा, नाम चतुर्विशति-प्रबन्ध भी है---किम्बदन्ती-मिश्रित एक अद्ध ऐतिहासिक ओर दूसरा अद्धे छोक- कथात्मक निबन्ध-सट्ठडह है | इसमें जिन २४ व्यक्तियोंके या प्रसिद्ध पुरुषोंके प्रबन्ध गून्थे गये हैं, उनमें से, प्रन्थकार-ही-के कथनानुसार, १० तो जेनधर्मके प्रभावशाली आचाये हैं, ¢ संस्कृत भाषाके सुप्रसिद्ध कवि-पण्डित है, ७ प्राचीन अथवा मध्य-कालीन भश्रसिद्ध राजा हैं, ओर, ३ जेनधमानुरागी राजमान्य गृहस्थ पुरुष हैं । आचाय भद्रवाहुसे लेकर हेमचन्द्रसूरि तकके जिन १० आचार्योका वर्णन इसमें दिया गया है वे; तथा हे, हरिहर, अमरचन्द्र आर मदनकीर्ति-ये 2 कवि-पण्डित, निस्सन्देह ऐतिहासिक पुरुष हैं सातवाहन आदि जिन ७ राजाओंका चरित-वर्णन इसमें ग्रथित हे, उनमें से, अन्तिम दो-अथोत्‌ लक्ष्मणसेन ओर मदनवर्मा-का समय मध्य कालका उत्तर भाग होनेसे उनके अस्तित्व ओर समयादिका सप्रमाण उल्लेख इतिहासके ग्रन्थोमें से मिल सकता है । वत्सराज उदयन, भारतीय इतिहासके प्राचीन युगमें हो जाने पर भी, महाकवि भास आदिके नाटकादिक ग्रन्थोंमें अमर नाम प्राप्त कर लेनेके कारण ऐतिहासिकोंमें यथेष्ट परिचित हे । सातवाहन ओर विक्रमादित्य, भारतीय साहिदय ओर जनश्रुतिमें अत्यन्त प्रसिद्ध होने पर भी, वे कोन थे ओर कब हो गये-इस विपयमें पुरातत्त्ववेत्ताओंमें अत्यन्त मत-वेविध्य है | तथापि, वे कोई ऐतिहासिक पुरुष जरूर थे, इतना स्वीकार कर लेनेमें कोई आपत्ति नहीं की जा सकती । वङ्कचृल राजाके ऐतिहासिकत्वके लिये इन अ्रन्थोंकोी छोड कर, और कोई अधिक वैसा इतिहास-सम्मत प्रमाण अभीतक ज्ञात नहीं हुआ । अत एवं उसके अस्तित्व-नास्तित्वके वारेमें विशेष कुछ कहा नहीं जा सकता । नागाजुनका जो वर्णन इस संग्रहमें-अथवा इसके समान-विषयक अन्य अन्य ग्रन्थोंमें-दिया हुआ मिलता है, उससे तो, उसके कोई राजा या राजपुरूप होनेकी वात ज्ञात नहीं होती । प्रबन्धगत वर्णनसे तो वह कोई योगी या सिद्धपुरुष ज्ञात होता हे। तो फिर ग्रन्थकारने उसकी गणना राजा या राजपुरुपके रूपमें किस आशयसे की है सो ठीक समझमें नहीं आता । सम्भव है, राजपुत्र ( आधुनिक राजपूत ) रणसिंहकी पत्नीके गर्भमें जन्म लेने-ही-के कारण उसकी गणना राजवगेमें की गई हो। नागाजुनकी कथा भी ऐतिहासिक दृष्टिसे उतनी ही सन्दिग्ध है जितनी सातवाहन ओर विक्रमकी है । तथापि, वह भी एक ऐतिहासिक व्यक्ति अवश्य थी इतना मान लेना इतिहासके विरुद्ध नहीं कहा जा सकता। राजमान्य जेन गृहस्थोंमें आभड জীহ वस्तुपाल सुप्रसिद्ध ओर सुज्ञात व्यक्ति हैं । परंतु, काश्मीरनिवासी संघपति रत्न श्रावककी कथा, इतिहासके विचारसे, वेसी ही अज्ञात है जैसी वह्कचूछकी कथा है । ५२, प्रबन्धकोशके समान-विषयक अन्य ग्रन्ध जिनप्रभसूरि रचित विविधतीर्थकस्पकी प्रस्तावनामें दमने सूचित कियाद कि-विस्तृत जेन इतिदासकी रचनाके लिये, जिन अ्न्थोंमें से विशिष्ट सामग्री प्राप्त हो सकती है, उनमें (१) प्रभावकचरित, (२) प्रबन्धचिन्तामणि, (३) प्रबन्धकोक्च, ओर (४) विविधतीर्थकल्प-ये ४ ग्रन्थ मुख्य हैं। ये चारों ग्रन्थ परस्पर बहुत कुछ समान- विषयक हैं ओर एक-दूसरेकी पूर्ति करनेवाले हैं ।” प्रबन्धकोश इन चारोंमें कालक्रमकी दृष्टिसे कनिष्ठ यानी सबसे पीछेका है। इस क्रममें, श्रभावकचरित सबसे पहला [ वि० सं० १३३४ ], प्रबन्धचिन्तामणि दूसरा [ वि० सं० १३६१ 1 विविधतीर्थकल्प तीसरा [वि० सं° १३८९], ओर प्रबन्धकोश्च चौथा [ वि० सं“ ९४०५ ] स्थान रखता




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now