राजा भोज | Raajaa Bhoj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.4 MB
कुल पष्ठ :
423
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पण्डित विश्वेश्चरनाथ रेड - pandit vishveshcharnath Red
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजा भोज का वंश द पर के वसिष् के श्राश्रम में घुस कर उसकी गाय को छीन ले गया । इस पर वसिष्त के अप्निकुण्ड से उत्पन्न हुए एक वीर ने शत्रुओं का नाश कर उसकी गाय उसे वापिस ला दी । यह देख मुनि ने उस योद्धा का नाम परमार रख दिया और उसे राजा होने का आशीर्वाद दिया । उसी परमार के वंश में द्विज-वर्ग में रन्लरूप श्रौर अपने भुजबल से नरेश-पद को प्राप्त करने वाला उपेन्द्रराज नाम का राजा हुआ । पद्मगुप्तर परिमल के बनाये नवसाहसाइुचरित - में उत्तड्डसुषिरे भीमे वशिष्ठो नन्दिवद्धनम् । किला्रिं स्थापयामास भुजड्ञाबुद्संज्ञया ॥ इसी प्रकार जिन प्रभसूरि के बनाए भ्रबुंद कल्प में भी लिखा है -- नन्दिवर्धन इत्यासीत्पाक् शैलोयं हिमादिजः । कालेनाबंदनागाधिछानात्त्वबुद इत्यभ्ूत् ॥२५॥ १ इसकी सातवीं पीढ़ी में राजा भोज हुआ था । रे यह सगाइगुप्त का पुत्र और भोज के चचा मुझ वाक्पतिराज द्वितीय का सभा-कवि था । तंजोर से मिली नवसाहसाइचरित की एक हस्तलिखित पुस्तक से इस कवि का दूसरा नाम कालिदास होना पाया जाता है। यद्यपि इस कवि ने श्रपने श्राश्रयदाता मुख के मरने पर कविता करना छोड़ दिया था तथापि अन्त में मुख के छोटे आता भोज के पिता सिन्धुराज के कहने से नव- साहसाइचरित नामक १८ सर्गे के काव्य की रचना की थी । यह घटना स्वयं कवि ने अपने काव्य में इस प्रकार लिखी है -- दिवं यियासुमेम वाचि मुद्ामदत्त थां वाक्पतिराजदेवः । तस्यानुजन्मा कविबांधवोसौ भिनस्ति तां संप्रति सिन्घुराजः ॥ सर्ग १. श्लोक ८
User Reviews
No Reviews | Add Yours...