तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा | Tirthkar Mahavir Aur Unki Aacharya Parampara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
670
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राक् कथन
भा रततवषंका क्रमबद्ध इतिहास बुद्ध ओर महावीरे प्रारम्भ होता है।
इनमेसे प्रथम वोद्धधमंके सस्थापक थे, तो द्वितीय थे जेनघमंके अन्तिम तीर्थं
कर । 'तीर्थंकर' शब्द जनधमंके चौबीस प्रवत्तंकोके लिए रूढ जेसा हो गया
है, यद्यपि है यह यौगिक ही । घरम॑रूपौ तीके प्रवत्तंकको हौ तीर्थकर कहते है ।
आचायं समन्तभद्र पन्द्रहवे तीर्थकर घमंनाथको स्तुत्तिमे उन्हे धमंतीथंमनघ
प्रवतंयन्' पदक द्वारा धमेततोथेका प्रवत्तंक कहा है । भगवान महावीर भी उसी
धमंतीथंके अन्तिम प्रवत्तंक थे ओर आदि प्रवत्तंक थे भगवान् ऋषभदेव । यही
कारण रहै कि हिन्दु पुराणोमे जैनवमेको उत्पत्तिके प्रसगसे एकमात्र भगवानु
ऋषमदेवका ही उल्लेख मिलता टै किन्तु मगवानु महावीरका संकेत तक नही
दै जब उन्हीके समकालीन बुद्धको विष्णुके अवतारोमे स्वीकार किया गया है।
इसके विपरीत त्रिपिटक साहित्यमे निग्गठनाटपृत्तका तथा उनके अनुयायी
निग्रन्थोका उल्लेख बहुतायतसे मिलता है । उन्हीको लक्ष्य करके स्व° डो°
দীন याकोवोने अपनो जैन सूत्रोकी प्रस्तावनामे लिखा है-- “इस बातसे অন
सब सहमत है कि नातयृत्त, जा महावीर अथवा वधंमानके नामसे प्रसिद्ध हैं,
बुद्धके समकालीन थे | बौद्धग्रन्थोम मिलनेवाल उल्लेख हमारे इस वि चारको
दृढ करते हैं कि नातपुत्तस पहल মা निम्रन्थोका, जो आज जेन अथवा आंत
नामसे अधिक्रे प्रसिद्ध है, अस्तित्व था} जब बौद्धधमं उत्पन्न हुआ तब
नि्ल्थोका सम्प्रदाय एक बडे सम्प्रदायके रूपमे गिना जाता होगा । बौद्ध पिटको-
मे कुछ निग्रन्थोका बुद्ध ओौर उनके शिष्योके विरोधीके रूपमे और कुछका
बुद्धक अनुयायी बन जानक रूपमे वर्णन आता है । उसके ऊपरसं हम उक्त अनु-
নান ক্ষ অক্ষত ই | इसके विपरीत इन ग्रन्थोमे किसी मी स्थानपर एेसा कोई
उल्लेख या सूचक वाक्य दैवनेमे नही आत्ता किं निम्रन्थोका सम्प्रदाय एक
नवीन सम्प्रदाय है ओर नातपुत्त उसके सस्थापक हैँ । इसके ऊप्रसे हम यह्
अनुमान कर सकते है |क बुद्धके जन्मसे पहले अति प्राचीन कालसे निग्रेन्थोका
अस्तित्व चला आता है।”
अन्यत्र डॉ० याकोवीने लिखा है--'इसमे कोई भी सबूत नही है कि पाश्वं
नाथ जैनधमंके सस्थापक थे। जैन परम्परा प्रथम तीर्थकर ऋषभदेवको जैन
घमंका सस्थापक माननेमे एकमत है । इस मान्यतामे ऐतिहासिक सत्यकी
सम्भावना है ।'
प्राक् कथन ९
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