व्यावहारिक सभ्यता | Vyavaharik Sabhyta

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Vyavaharik Sabhyta by गणेशदत्त 'इन्द्र ' - Ganeshdatt 'Indra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यावहारिक सभ्यता “मेरी धारणा ह कि भारत ने जिस सभ्यता का जन्स दिया था, विश्व की काई सभ्यता उसकी बराबरी की नहीं है । हमारे पूर्व पुरुष जा बीज बो गये ह, उसकी समता करनेबवाली, इस संसार में एक भी वस्तु नहीं है। रोम के बुर उठ गये, यनान का नाम शेप रह गया, फिरोन बा सामाज्य रसातछ को चला गया, जापान पब्चिम के चगरू मे फँस गया और चीन को तो बात कुछ कहते ही नहीं बनती । परस्तु भारत की, पत्ते झड़ जाने पर भी जड़ मजबत हैं । महात्मा গামা




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