शरत् साहित्य | Sharat Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दशय |] प्रथम अंक ' श
मैंने आज तक कभी कोई भी अन्याय नहीं किया। दया करके मुझे छोड़:
दीजिए,*--
जीवानन्द -- ( आवाज देकर ) महावीर---
पोडशी --( मारे आतंकके रोकर ) आप मुझे जानसे मार डाल सकते हें,
मगर--
जीवानन्द-- अच्छा, ये बहादुरीकी बात करना उन छोगोंकी कोठरीमें
जाकर । महावीर-
षोढ़शी--( जमीनपर खोटकर रोती हुई ) किसीकी मजाल न्धी जो मेरे
प्राण रहते मुझे यहाँसे ले जा सके। मेरी जो कुछ दुर्दशा हो,--मुझ्नपर जितना
भी अत्याचार हो, सब आपके सामने ही हो;--आज भी आप ब्राह्ृण हें,
आज भी आप भले घरानेके, शरीफ खानदानके हैं ।
जीवानन्द--( कठोर निष्टुर हँसी हँसते हुए; ) तुम्हारी बातें सुननेमे तो
बुरी नहीं हैं, लेकिन रोना देखकर मुझे दया नहीं आती। में बहुत सुना करता
हूँ । ओरतोंपर मेरा इतना लोभ नहीं,--अच्छी न लगनेसे उन्हें में नोकरोंको'
दे दिया करता हूँ। तुम्हें मी दे देता,--सिर्फ आज ही पहले-पहल मोइ-सा पैदा
हो गया है। ठीक मालूम नहीं पड़ता,--नशा उतरे बिना ठीक अन्दाज
नहीं बंठता ।
महावीर--( दरवाजेके पास आकर ) हुजर !
जीवानन्द--( सामनेके किवाड़की ओर उँगलीसे इशारा करके ) इसकों
आज रात-भरके लिए, उस कोठरीमें बन्द कर दे | कल फिर देखा जायगा ।
घोड़शी --( आँयू-भरी आँखोंसे ) मेरे सर्वनाशके बारेमें जरा सोच देखिए,
हुजूर ! कल में फिर किसीको मुँह मी न दिखा सकूँगी।
जीवानन्द--सिर्फ दो-एक दिन । उसके बाद दिखा सकोगी |--डफ्
लीवरका दर्द आज सबेरेसे ही मादूम दो रहा था। अब अचानक जोरका बढ़
गया--अब ज्यादा दिक मत करो,--जाओ ।
महावीर--( घुड़ककर ) अरे उठ न छुगाई,-- चल |
जीवानन्द--( जोरकी एक डॉट बताकर ) खबरदार, सूअरका बच्चा, अच्छी.
तरह बात कर ! फिर अगर कभी हमारे वगैर हुकुमके किसी औरतको पकड़:
लाया तो बन्दूकसे उड़ा दूँगा। सिरका तकिया पेटके पास खींच ओंधे पड़कर
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