शरत् साहित्य | Sharat Sahitya

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Book Image : शरत् साहित्य   - Sharat Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दशय |] प्रथम अंक ' श मैंने आज तक कभी कोई भी अन्याय नहीं किया। दया करके मुझे छोड़: दीजिए,*-- जीवानन्द -- ( आवाज देकर ) महावीर--- पोडशी --( मारे आतंकके रोकर ) आप मुझे जानसे मार डाल सकते हें, मगर-- जीवानन्द-- अच्छा, ये बहादुरीकी बात करना उन छोगोंकी कोठरीमें जाकर । महावीर- षोढ़शी--( जमीनपर खोटकर रोती हुई ) किसीकी मजाल न्धी जो मेरे प्राण रहते मुझे यहाँसे ले जा सके। मेरी जो कुछ दुर्दशा हो,--मुझ्नपर जितना भी अत्याचार हो, सब आपके सामने ही हो;--आज भी आप ब्राह्ृण हें, आज भी आप भले घरानेके, शरीफ खानदानके हैं । जीवानन्द--( कठोर निष्टुर हँसी हँसते हुए; ) तुम्हारी बातें सुननेमे तो बुरी नहीं हैं, लेकिन रोना देखकर मुझे दया नहीं आती। में बहुत सुना करता हूँ । ओरतोंपर मेरा इतना लोभ नहीं,--अच्छी न लगनेसे उन्हें में नोकरोंको' दे दिया करता हूँ। तुम्हें मी दे देता,--सिर्फ आज ही पहले-पहल मोइ-सा पैदा हो गया है। ठीक मालूम नहीं पड़ता,--नशा उतरे बिना ठीक अन्दाज नहीं बंठता । महावीर--( दरवाजेके पास आकर ) हुजर ! जीवानन्द--( सामनेके किवाड़की ओर उँगलीसे इशारा करके ) इसकों आज रात-भरके लिए, उस कोठरीमें बन्द कर दे | कल फिर देखा जायगा । घोड़शी --( आँयू-भरी आँखोंसे ) मेरे सर्वनाशके बारेमें जरा सोच देखिए, हुजूर ! कल में फिर किसीको मुँह मी न दिखा सकूँगी। जीवानन्द--सिर्फ दो-एक दिन । उसके बाद दिखा सकोगी |--डफ्‌ लीवरका दर्द आज सबेरेसे ही मादूम दो रहा था। अब अचानक जोरका बढ़ गया--अब ज्यादा दिक मत करो,--जाओ । महावीर--( घुड़ककर ) अरे उठ न छुगाई,-- चल | जीवानन्द--( जोरकी एक डॉट बताकर ) खबरदार, सूअरका बच्चा, अच्छी. तरह बात कर ! फिर अगर कभी हमारे वगैर हुकुमके किसी औरतको पकड़: लाया तो बन्दूकसे उड़ा दूँगा। सिरका तकिया पेटके पास खींच ओंधे पड़कर




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