कमल, तलवार और त्याग भाग 1 | Kalam Talwar Aur Tyag Part - I
श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.24 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राणा प्रताप श्द
बनाए गए । मानसिंह श्रौर महावंत खाँ उनके सलाहकार
नियुक्त हुए ।
राणा भी झ्पने वाईस हजार शूरवीर श्रौर मृत्यु को
खेल समभकनेवाले राजपूतों के साथ हल्दीघाटी के मेदान में
पैर जमाए खड़ा था । ज्यों ही दोनों सेनाएँ श्रामने-समाने हुई,
प्रलयकांड उपस्थित हो गया । मानसिंह के साथियों के दिलों
में अपने सरदार के श्रपमान की श्राग जल रही थी श्रौर वह
उसका बदला लेना चाहते थे । राणा के साथी भी यह दिखा
देना चाहते थे कि झ्रपनी स्वाघीनता हमें जान से भी श्रधिक
प्यारी है । राणा ने बहुतेरा चाहा कि मानसिंह से मुठभेड़ हो
जाय, तो ज़रा दिल का हौसला निकल जाय; पर इस यत्न में
उन्हें सफलता न हुई । हाँ, संयोगवश उनका घोड़ा सलीम के
हाथी के सामने श्रा गया । फिर क्या था, राणा ने चट रिकाब
पर पाँव रखकर 'भाला चलाया, जिसने महावत का काम
तमाम कर दिया । चाहता था कि दूसरा तुला हुमा हाथ चला
कर श्रकबर का चिरास़ गुल कर दे कि हाथी भागा ।
शाहज़ादे को खतरे में देख, उसके सिपाही लपके श्रौर
राणा को खतरे में देख, उसके सिपाही लपके श्रौर राणा को
घेर लिया । राया के राजपुतों ने देखा कि सरदार घिर गया,
तो उन्होंने भी जान तोड़कर हल्ला किया श्र उसे प्रारा-
संकट से साफ़ निकाल लाये । फिर तो वह घमासान युद्ध हु
कि खून की नदियाँ वह गईं । राणा ज्मों से चूर हो रहा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...