अनेकान्त तृतीय वर्ष | Anekant Year 3

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Anekant Year 3 by आचार्य जुगल किशोर मुख़्तार - Acharya Jugal Kishore Muktar

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कार्तिक वीर निर्वास सं०२५४६६]] व 55555555880 ি885558884850888788$8 ররর তারার রি হিরানিরাাররতারিতারারাারািিরিডিওওররী আত -++०३७ क्म्मपयडिपाहुड' गुशनाम दे उसी प्रकार 'वेयण- कसीणपाहुड' भी गुणनाम है; क्योंकि विदना” कर्मक उदयको कहते हैं, उसका निरवशेषरूपस जो वर्णन करता है उतका नाम 'वियणकसीणपाहुड' है; जैसा कि धवला के निम्न वाक्यसे प्रकट है, जो कि आराके जैनसिद्धान्तमवनकी प्रतिमें पत्र नं० १७ पर दिया हुआ है-- “कम्मराणुं पयडिसरूतबं वण्णेदि तेश कम्मपंय- हिपाहृडे त्ति गुणणामं, बयणकसीणपाटृड त्ति वि तस्स विदियं णाममत्थि, केयणा कम्माणमुदयो त कसीणं णिखससं बर्णद्‌ अदो वेयणकसीण- पाहुडमिदि, एद्मवि गुणणाममेव ।” वेदनाखण्डका विषय “कम्मप्यडिपाहुड' न होनेकी हालतमें यह नहीं हो सकता कि भूतबलि आचार्य कथन करने तो बेठें बेदनाखए्डका और करने लगें कथन कम्मपयडिपाहुडका, उसके २४ अधिकारोंका क्रमशः नाम देकर ! उत हालतमें कम्मप्यडियाहुड के अन्तर्गत २४ अधिकारों (अनुयोगद्वारों) मंस द्वितीय अधिकारके साथ अपने वेदनागवण्डका सम्बन्ध ब्यक्त करनेके लिये यदि उन्हें उक्त २४ अधिकारंकि नामका सूत्र देनकी जरूरत भी होती तो त्रे उस देकर उसके ब्राद दी वेदना नामके अधिकार का वर्णुन क ते; परन्तु ऐसा नहीं किया गया--वेदना” अधिकार के पूर्व 'कृदि' अधिकारका और वादको (कात आदि আশি, कारोंका भी उद्देशानसार (नामक्रमस) वन प्रारम्भ किया गया हैं| धव्रलकार श्रीवीरसेनाचायन भी, २४ अधिकारोंके नामवाल यूत्रकी व्याख्या करनेके बाद, जो उत्तरसुत्रकी उत्थानिका दी है उसमें यह स्पष्ट कर दिया हैकि उद्देशके अनुसार निरदेश दाता है इसलिये प्र्मण करनेके लिये “दना' नामके श्राचार्य 'कदि' अनुयोगद्वारका घवलादि-भ्रुतन्परिचय ५ उत्तरसूत्र कहते हैं। यथा--- “जहा उद्देसो तहा शिह्सों क्तिकट्ट कदि- अणिओगरद्दारं परूवराद्रुमुत्तरसुत्तं भणदि |” के इससे स्पष्ट है कि “'वेदनाखण्ड” का विषय ही “कम्मपयडिपाहुड' है; इसीसे इसमें उसके २४ अधि- कार्रोकों अपनाया गया है, मंगलाचरण तकके ४४ सूत्र मी उसीसे उठाकर रक्खे गये हैं। यह दूसरी बात है कि इसमें उसकी अपेक्षा कथन संक्षेपसे किया गया है, कितने दो अनुयोगद्वारोंका पुरा कथन न देकर उसे छोड़ दिया है ओर बहुतसा कथन श्रपनी प्र॑थपद्धतिके अनुसार सुविधा आदिकी दृष्टिसे दूसरे खण्डोंमें भी ले लिया गया है। इसीस 'पद्खए्डागम” महाकम्मपयडि- पाहुड ( मद्दाकमंप्रकृतिप्राभत ) से उद्धृत कहा जाता है | यहाँ पर इतना और भी जान लेना चाहिये कि वेदनाखण्डके मूल २४ श्रन॒योगद्वारोंके साथ ही धवला टीका समाप्त हो जाती है, जेसोकि ऊपर बतलाया गया है, और फिर उसमें वर्भशाखए्ड तथा उसकी टीकाके लिये कोई स्थान नहों रहता | उक्त २४ अनुयोगद्वारोंमें धर्गणा' नामका कोई अनुयोगद्वार भी नहीं है । बंधण” श्रनुयोगद्वार के चार भेदोंमें 'बंधणिज्ज” मेदका वर्णन करते हुए, उसके अवान्तर मेदोंमें विषयको स्पष्ट करनेके लिये | संक्षेप 'बर्गशा-प्ररूपणा” दी गई है---बगंणाके স্টিল न. कन ग मीन == = देखो, आरा जैनसिद्धान्तमवनकी थलः प्रति पत्र ५९२ । | जैसा कि उसके निग्न वास्यते प्रकट है-- तेण वेध णिजपरूपवणे कीरमाणे वग्गणपरू- वणा रिच्खरण कायव्या । अर्णा तेवीस वम्गणा- सुह्या चेव बग्गणा बंधपाओगा अश्णा जो बंधपा- झोगा ण॒ होंतिअत्तिगमारणु वपत्तोदों ।”




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