मामोनी रायसम गोस्वामी की कहानियां | Mamoni Raysam Goswami Ki Kahaniyan

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Mamoni Raysam Goswami Ki Kahaniyan by श्रवण कुमार - Shravan kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वंशबेल / 3 कृष्णकांत ने अपना सर हिलाया और बोला, “इस लड़की ने तो बंगरा ब्राह्मणों की नाक कटवा दी है। विधवाओं के लिए जो विधान बना है, इसने उसकी रेड मारकर रख दी है।” “हां, हां। मैंने इसे एक बार देखा था। धान की दो टोकरियों के बदले खड़िया मछली का एक जोड़ा ले रही थी। कृष्णकांत के मुंह से एकदम निकल पड़ा, “अरे, अरे ! विधवा और खड़िया मछली ! छी, छी ! कलियुग ! घोर कलियुग !” “चुप ! ब्राह्मण कहीं का ! अब तुम सारी दुनिया में इसका ढिंढोरा पीटकर कहोगे कि एक ब्राह्मण विधवा मछली खाती है ! अरे, जहां देखो अब ऐसा ही है। चाहे ब्रह्मपुत्र के उत्तर में चले जाओ या उसके दक्षिण में। पुरानी रस्में खत्म कर देनी चाहिए...' पीतांबर के इद-गिर्द कुछ मक्खियां घूं-घूं करने लगी थीं। उसने अपनी चादर के पल्ल से उन्हं भगाया। इस दौरान कृष्णकांत पास कं एक पेड कं ठठ पर गहरी सांस लेता हुआ জা ব্রতা था। पीतांबर ने प्रश्न किया, “^तुम्हारे उन यजमानो का क्या हाल हे ? वही जिनके लिए त॒म पूजा कर रहे थे ? आजकल तुमसे कंसे पेश आते हैं ?” “सब कुछ तो तुम जानते हो, और फिर भी पूछ रहे हो ? मेरे बड़े भाई का मुझसे झगड़ा हो गया है। ज्यादा काम तो उसी ने हथिया लिया है। में तो एक तरह से बरबाद हो गया हूं।” “भैया, तुम्हें संस्कृत तो ठीक से आती नहीं । तुम्हारे भाई ने चारों तरफ यह ख़बर फैला दी है। इसीलिए तुम्हारे यजमान अब तुमसे बिदकने लगे हैं।' कृष्णकांत ने इसका विरोध करना चाहा। बोला, “खूब ! बहुत खूब ! जरा बताओ तो, उत्तरी किनारे के कितने ब्राह्मण नरहरि भगवती को तरह संस्कृत बोल सकते है ? हम दोनों नै साथ-साथ ही शिक्षा ग्रहण की थी। उसकी अक्सर बेत से पिटाई होती, लेकिन मेरी एक बार भी नहीं हई । मेँ जानता हू मेरे यजमान क्यो मुञ्से विमुख हए । इधर तो चारों वेदों मे पारंगत ब्राह्मणों को भी भूखा मरना पड रहा है । पहले यजमान से हर महीने एक जनेऊ, टो धोतियां ओर पाच रुपए प्राप्त करना आसान था । अब तो कोई इन बातों को मानता ही नहीं । अपना खर्चा बचाने के लिए हमारा पुराना यजमान मणिकांत शमां अपने दोनों बेटों को कामाख्या ले गया ओर वहीं उनका यज्ञोपवीत करवा दिया गया । माइतानपुर के यजमानं ने अब अपने माता-पिता का श्राद्ध एक साथ ही करवाना शुरू कर दिया हे । जब तक कृष्णकांत अपनी बात कहता रहा, पीतांबर बिलकुल चुप रहा । उसने न तो सहमति दिखाई ओर न ही असमहति । उसके दिमाग में तो, बस, दमयंती का गोरा रूप ही चक्कर कारे जा रहा था। उसने त्वचा की एसी कोमलता




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