हिंदुस्तानी | Hindustani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९६ हिल्हुत्ताती भाग ४१ सामयिक स्वरूप को पहचानने में कठिनाई होंगी ! मैं आज की कहानियों का विश्लेषण नदी कर रहा हैँ। यह मैं प्रेमचंदजी की कहानियों के संदर्भ में कह रहा हूँ । सक्षेप में प्रेमचंदजी है कहानिया, प्रधान रूप से कहानियाँ हैं। कहानियों के मानक रूप का निर्धारण करने में इन कहानियों के ॥ की स्वीकार करना होगा । कहाती को जिन कारणों से कहानी कहा जाता है, वे सब कारण प्रेम- चेदजी की कहानियों में सिल जायेगे 1 (१०९ ) प्रेमचंदजी की कहानी-कला की प्रशंता सभो समीक्षकों ने की है - उन समोक्षकी ने भी जो उनके विचारों से सहमत नहीं हैं। इसका कारण यह है कि प्रेमचदजी की कहानियों का सामाजिक संदर्भ स्पष्ट है। इस स्पष्टता कै कारण कहानी, कहानी कै स्प पं प्रे्षमोय हुई दहै | कहानी कै साध्‌ माध्यम जुडा हुआ है और यह माध्यम पत्र-पत्रिकाएं है । पत्न-पत्रिकाओं मे प्राय: ऐसी रचना» छपता हैं जो सामयिक होती हैं। प्रेमचंदजी की कहानियाँ पहले पत्र-्पा काओं मे छपी । उतेका सकलन बाद में हुआ । कहानीकार जब स्थायी रूप से कुछ कहना चाहता है और अपने को विस्तार एता चाहता है, तब बह उपन्यास की ओर बढ़ता है। प्रायः यह देखते में आया है कि जो पहले कहा।नया लिखते थे, वे बाद में स्वीकृत होने पर उपन्यास लिखते लगे और कुछ लेखकों ने तो बाद मे कष्ानिया लिखता बन्द कर दिया । कहानियों के माध्यम से जे! साहित्य के क्षेत्र में आये, किन्तु बाद में उन्होंत कहानी को ही छोड़ दिया | इसका कारण यह है कि अन्ततः कहानी सामयिक ही मानी जाती है । दूसरी बात कहानियाँ पत्र-पत्रिकाओं में अधिक पढ़ी जाती हैं। उनको सकलनों में कम पढ़ा जाता है । 'कहानी-लैखक' को प्रेमचदजी ने साहित्यिक प्रतिष्ठा अवश्य दिला दी, किन्तु उपन्यासों के रूप में यदि विकास होता है तो साहित्यिक प्रतिष्ठा अधिक मिलती है। अज्ञेय ने कहानी लिखना छोड़ दिया | उसकी समस्त कहानियों के दो भाग छोड़ा हुआ रास्ता'--नाम से प्रकाशित हुए है । हम देखते हैं कि कोई भी महान साहित्यकार केवल कह्ानीकार रहना पसन्द नहीं करता । बाद म॑ वहू अन्य विधाओ की ओर बढ़ता है और जब उसे अपनी अभिव्यक्ति के लिये दूसरी विधा में जगह मिल जाती है तो बह्द इस विधा को छोड़ भी देता है । हुम कहानी-सकलन भी प्राय: उन्हीं लेखकों के पढ़ते हैं जिनको अन्य विधाओं मे प्रसिद्धि प्राप्त हो गई है। ऐसा, इसलिये कि माने या ने माने, कह्ठीती के साथ सामयिकता जुड़ी हुई है। सामयथिक होना एक ओर जहाँ दोष है, वहीं दूसरी ओर गुण भी है । यदि एक लेखक निरन्तर कहानियाँ लिखता है, तो उसे समय के अनुसार बदलना पड़ता है । (११) प्रेमचंदजी का पहला कहानी-संग्रह सोजे-चतन' १८०६ ई० में प्रकांशित हुआ और १८३६ ই লক্ষ ই अंत समय तक कहिये-- कहानियाँ लिखते रहे हैं । इस विधा मे निरन्तर कार्यं करते रहने के कारण वे अपने समय से सदैव जुड़े रहे और अपने को प्रतिबद्ध भी मानते रहे । प्रेमचंदजी का उनका अपना विकास वहानियों में ही होत। दिखलाई देता है। 'कफन' उनकी अन्तिम विकसित कहाती है। में कहता यह चाहता हुँ कि कद्वानी लिखना, समय के साथ जुड़ा रहते का प्रयत्न भी हैं। २८ जनवरी-४ फरवरी के दिनमान में आपका कहना है--स्तम्भ के अंतर्गत डॉ० नामवर सिह की एक टिप्पणी प्रकाशित हुई है-कहानी लिखना हिन्दी मे सबसे आसाव काम रह गया है ।-- यहं टिप्पणी इस बात का प्रमाण है कि कहानी विधा को जो समय के साथ रहती है और जिसके पाठकों की सश्या बच्य विधाओं की तुलना में सबसे अधिक रहतों है कितने हलके रूप मे सिया णा रहा है। कहानी के माध्यम से साहित्यिक ध्रान्दोलन कविता को तरह घलते रहे हैं. साहित्य को




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