सर्वहितकारी | Sarvhitkari

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Sarvhitkari  by वेदव्रत शास्त्री- Vedvrat Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वहितकारे ७ दिसम्बर, १६६१ सेकडों रोगों का एक इलाज नीम नोम प्रायुवंद के मतानुसार त्रिदोष का नाश करनेवाला है। वह सत्य की तरह कड़वा जरूर होता है लेकिन उसका परिणाम सुखद हो होता है , इसके पत्तों में प्रोटोतल, कैल्शियम लौह और विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है। ऐसे पेड पौधे बहुत कम हैं जो जड से शिखर तक समूचे के समूचे काम के हो इसको छाया छिलका, पत्ते, कूल फल और डण्ठल तक में इन्सान को तन्दरुस्त कर देने वाले ग्रुण विद्यमान हैं । यह सच है कि नीम हकीम ५ इलाज कराना खतरे से खाली नही होता, मगर 'नीम' से भाष बेखोफ इलाज करा सकते हैं। इसे सस्कृत पे गतिम्ब', हिन्दों में “नीम , बंगाली में ' निमगाछ' , गुजराती मैं “लिबडो , अंग्रेजी में 'नीमट्रो', मराठो में 'कडुनिब' तथा फारसी मे 'नेनवूनोम' कहते हैं। वो फिर आइये साधारण से लगनेवाले प्रयोगे से कठिन बोमा- रियों को दूर करते की विधि सही जानकारी ले-- আয়া प्रजीर्ण (बदहजमी) के कारण खट्टी डकार, सिरदद, जी मचलाने मौर कभी-कभी ज्वर जैसे लक्षण भी पंदा हो जाते हैं। नीम के फल एलमौली) खाइये | मीठे चरपरे होने से उन्हें खाने को जी करेगा। इस से जठराग्ति दहल उठेगी भ्रौर भूख भड़कने लगेगी। प्रांखों में जलन | नीम की पत्तियों का रस और पठानी लोध वरावर पॉसकर पलको पर लेप द। आंखों की जलन ओर लाली इससे दूर हो जायेगो । धावन भरना नीम की पत्तियों का रस १० ग्राम और सरसो का तेल १० ग्राम को २४५ ग्राम पानी में पकाये। जब जल का अंश जल जाये तो इसे नीचे उतार ले। इस तेल को घाव पर लगाने से मवाद श्रौर विष जलकर नयी त्वचा अ कुरित होकर घाव भर जाता है। जवानी के कोल जवानी में अक्सर कीले हो जाया करती हैं। इस पर नीम के बीज सिरके में पीसकर लेप करते रहें तो दाग घुलकर मुखड़ा सुन्दर हो , भता है । जुएं और लीखं नीम का तेल सिर में लगाने से जुए और लोखे साफ हो जाती हैं। तिहली बढ़ना नौशादर, निमौली और अजवाइन समान मात्रा में लेकर चूणं बनाले । ३ ग्राम चूर्ण सुबह ताजे पानी के साथ लेने से तिलली अपना आकार ग्रहण कर लेती है । दस्त नीम के ५ बीजों की गिरी पीसने के बाद फांककर पानी की घूट भर ले। दिन में ३ बार इसका सेवन करे तो दस्त रुक जाते हैं और दस्त लगने की पुरानो बीमारी भी इससे दूर हो जाती है। दमा कहावत है कि 'दमा दम के साथ जाता है' लेकिन नोम तेल दें को जड़ से उखाड देता है| पानी में नोम का शुद्ध तेल १० बूद डालकर चबाकर निगल जाये । ऐसा दिनभर में ६ बार करने से तीन महीने वाद दर्म का दम निकल जाता है । फम दिखाई देना नीम के फूल छाया में सुखाये हुए में कलमी शे रा पीसकर छानकर सभ जेसा बनाल। सुबह-शाम आंखों में १-१ सलाई आंजने से आंखों की ज्योति दिन-व-दिन बढ़ने लगतो है । पतिगों से परेशानी रोशनी पर गर्मियों में पतिंगे आकर परेशान करते हैं। अग १ नीम के तेल से दोपक जलाए तो परतिंगे उधर आने से भी घवरायगे | बवासीर बवासीर खूनी हो या वादी नाम इसकी जड़ हिला देना है । ववा- सीर का रोग खून से सांघा सम्बन्ध रखता है श्रौर नोम खून का नियत्रण उखूवो करता है । नोम को अन्दरवालो छाल ३ ग्राम और गुड ४ ग्राम पीसकर गोलिया बनाकर निगले और बवासीर में खून रोकने के वास्ते प्रतिदित ४-५ निमोलिया खाना शुरु करे। रोजाना किसो के साथ भो ५ बृद नीम तेल पिये और यही तेल मस्सों पर लगाए तो बवासीर का नाश होता है। रतोंची रतौंधी में रात को कम दिखाई देता है या विल्कुल दिखाई नहीं देता है। निमोलिया कच्चो ३-४ तोठ लाइये। निमौलो फोडकर उसमें सलाई घुमाकर आखो में आजने से रात को सामान्य दिखाई देने लगता है। >परथु पाटोदार @ তব पानी ते हाथ-पेर धोकर पर के तलवे मे तेल मालिश करके सोने ने अच्छो निद्रा आती है श्रौर स्वप्तदोष आदि का भय नहीं रहता है। @ चिरस्थायो स्वास्थ्य और दीघ जीवन के लिए 'सात्विक भोजन! ओर अच्छी नीद तथा 'ब्रह्मचय' का पालन करना मानवमात्र के लिए अनिवाय॑ है । @ सुबह नाइते मे चाय न लेकर अकुरित चने ले क्योंकि चाय स्वा- स्थय के लिए वहुत हो हानिकारक है। सामार देनिक जनसण्देश् २४-११-६१ गृरकुल इन्द्रप्रस्थ को दान श्रीमतो सुदे्रानो धमंपत्नी श्री हरषशलाल जी गुप्त मकान न° ८४१/१५ फरीदाबाद ने गुरुकुल इन्द्रप्स्थ जि० फरीदाबाद के पिघन छात्रों के लिये १२ रजाइया तथा १२ तलाइया प्रदान की हैं। स्मरण रहे इन्होंने आयसमाज सेक्टर १५ फरीदाबाद मे भो सत्सग हेतु एक वड़ा हाल तथा यनगाला अदि के निर्माण हेतु उदा रतापुवेक নান देकर अनुसरणीय काय किया है। इसी प्रकार स्वर्गीय श्री जगस्‍नाथ जो सेठ को सुपुत्री श्रीमती शशिप्रभा मकाद न० १४३७, सक्टर १५ फरीदाबाद ने अपने पिताजों की स्मृति मे गुन्कुल के ब्रह्म चारियो को अपने करकमलो से फल वित- रीत किये हैं। उपरोक्त दानी महानुभावों को गुरुकुल परिवार को शोर से घन्यवाद किया गया । +कैदारसिह श्रार्य कार्यालयार्ध:क्षक आयंसमाज कासंढी का वाषिक महोत्सव सम्पन्त दोपावली के उपलक्ष्य पर ३० अक्तूबर, १६६१ से स्वामा वेद रक्षानन्द सरस्वती के ब्रह्मत्व मे एक सप्ताह का यज्ञ तथा वेदकथा का कार्य सुचार-रूप से चला | आरम्भ के तोन दिलों में हरबाणा सभा के अजनोपदेशक स्वामी देवानश्द जी महाराज ने गराव, मांस, वीड़ीो जा कुरीतियों को छोडने तथा वेदिकधम का प्रचार किया। अस्तिम दोन दिउ दीवाली तक उत्तर भारत के प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्र। सहदेव जो वेबडक ने क्रातिकारो प्रचार किया । जिससे नौजवानों में ज/गति थे उत्साह प्राप्त हुआ। थज्ञ को पूर्णाहुति पर स्वामा घर्मातन्‍द जी हाः ग्रायंसमाज पानीपत ने भो दीपावली तथा महाँष दधानरद निर्वाण पर मामिक विचार प्रस्तुत किये । वानप्रस्थी महानाद, सोनीपत £০)




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