संस्कृति और साहित्य | Sanskriti Aur Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी साहित्य की परम्परा १३
भी पंचायती ढंग का था परंतु बाद में उनमें कुछ सर्दारों का ऐसा
प्रभुत्व हो गया जो जनशक्ति का उपयोग श्रपने स्वाथं के लिये करने
लगे । शिवाजी के नेतृत्व में जनशक्ति का जो संगठन हुआ, उसका
प्रभाव भी साहित्य पर पड़ा | भूषण के छन्दो में जहल तदह यह অল-
ध्वनि सुनाई पड़ती है। परंतु भूषण आरंभ से ही दरबारो में रहे थे
और तुलसीदास के विपरीत जन कवि न हो कर एक दरबारी कवि थे ।
नायिका भेद को अपना काव्य-विषय न बनाकर उन्होंने अपने
आश्रयदाताओ पर छन्द लिखे थे। फिर भी उनके आशभ्रयदाता
असाधारण व्यक्तिव के लोग थे। ओर उनमें लोक नेताओ के गुण
विद्यमान थे। भूषण अपनी धारा के अकेले कवि न थें। रीतिकाल में
ही वीरगाथा काल का एक छोटा-सा नूतन आविर्भावन्सा हो गया था
परंतु £ वीररसः के इन कवियों को अधिक लोकप्रियता न मिली
उसका कारण यह था कि वे अपने अाश्रयदाताओं के भक्त पहले.थे
देश के मक्त बाद को |
१६ वीं शताब्दी में डइगमगाते मुग़ल साम्राज्य और ध्वस्त
सामंतबाद की मुठभेड़ यूरप के नवीन पूँजीवाद से हुईं | यह पूजीवाद
अन्य देशों की अपेज्ञा इंगलेड में अधिक विकसित हो चुका था ।
इसलिये यूरुप को अन्य शक्तियाँ हिन्दुस्तान की लूट में अंग्रेजों के
सामने न टिक सकीं। सन् /४७ तक यह पूँजीवादी साम्राज्य अपना
विस्तार करता रदा । मुगल साम्राज्यवाद कुक तो मारतीय जन-संघपं
के कारण, कुछ अपनी कट्टर घार्मिक नीति और विलासिता के कारण
ओर अधिकांशतः अपनी सीमंतवादी बुनियाद के कारण इस नये
उद्योग-घंधों की बुनियाद पर तैयार किये गये बिटिश पंजीवाद का
सामना न कर सका | सन् ४७ में बुसने के पहले उसने अंतिम साँस
ली | किसी हृद तक उसे जनता की सहानुभूति भी प्राप्त थी। म॒ग़लो
के श्राक्रमण॒ के समय कुषं ज्ञमींदार, ताल्लुकेदार, राजा श्रादि उनसे
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