वनोषधि रत्नाकर भाग - 4 | Vanoshdhi Ratnakar Part-iv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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री दालमलिद्धतरतलिातातततितिवतददाद्ावतिलाशलततादाददततदाकततादतललतिलिदिलनलाललवदलदददनलललमनतिललमपनवनवनिवनिततदन्ालाशवकिििविवविवििििटनटिलिफिलननलललललडक, ा बी / अजजजजजजा यनोषधि रत्ताकर (चतुर्थ साग]) अभजधबाजजा बल्कि वर्णाश्रम के नामकरण में ब्राह्मण, क्षत्रिय बौर वेश्य इन तीनो मे ही सभी का समावेश करके किसी को शूद्र कहाने का रिवाज हमें खतम कर देना चाहिए । पढाने वाला जहा ब्राह्मण बने वही पुस्तक लिखने वाला, टाइप करने वाला, प्रेस चलाकर छापने वाला, पोथी वाधने वाला और उसे बेचने वाया भी ब्राह्मण वर्ग में लिया जाना चाहिए । आफिस के सभी कमंचारी भी इसी वर्ग मे आ सकते हैं । कोई नीच नहीं कोई शूद्र नहीं सभी द्विंज हैं यह भावना भरने से हम समाज के बडे वर्ग की कठा को मिटा सकते हैं । मिश्र जी का कथन है--जो वैद्य अपने जीवन के ४०४५० वर्ष रोगियों की सेवा मे व्यतीत करता है और उसकी सन्तान उससे उस शान को सीखती दै उसे सबसे पहले आयुर्वेद कालेज मे पढने के लि ये स्वीकार करना चाहिये तथा उसे और अधिक योग्यता सम्पादन का अवसर देना चाहिये । मान लो किसी वैद्य ने १३ वर्ष लगाकर अश््रकभस्म १००० पुटी तैयार की और फिर वह मर गया तो उसकी वह भस्म कौन इस्तेमाल करेगा मौर उसकी फसी हुई पूजी न निकल पाने पर उसकी स्त्री मौर बच्चे बे मौत मर बकते हैं । इस मानवीय पहलू को सामने रखकर ही आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिये । व्यव+ सारयों में आरक्षण के मुद्दे पर एक वडा कमीशन भारत सरकार को बेठाना चाहिये । इस हष्टि ले लुहारो गौर बढ़इयों के बच्चों को प्रवेश योग्यता तक पढ़ लेने के वाद इजिनियरिंग मे लेना ही चाहिये । अन्य चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों के वच्चों के आरक्षण पर भी यह नियम लागू हो सकता है । ५० प्रति- शत सीटें इसी आधार पर भरी जाने से इन सब व्यवसायवादियों को बहुत सन्तोष होगा । अपनी आधिक नीति के निर्धारण के समय प्राचीनकाल मे इस समस्या से कंसा जूझा गया था उसे भी ध्यान में रखकर सरकारी निर्णय किये जाने चाहिये । दुग्ध शालाओं मे घोसियों का आरक्षण पशुशालाओं मे बघेलों का आरक्षण, होर्टीकल्चर के पदों में काछियो का बारक्षण, वन विभागों मे वनवासियों का आरक्षण आज समय की माग है, हम भी वैद्यसन्तति के लिए भायुर्वेदीय शिक्षादीक्षा के लिए वंद्यसन्तति हेतु आरक्षण की मांग कर सकते हैं । इस ओर ध्यान दिलाने के लिये मैं मिश्र जी का आभारी हू, । अभिनन्दन ग्रन्यो के समपंण की प्रथा बहुत पहले से चली मा रही दै । व्यक्ति के जीवन काल में जिसे बभिनन्दन ग्रन्थ कहा जाता है पर सृत्यु के उपरान्त वह्टी स्मृतिग्रन्थ वन जाता है । यांदवजी महाराज के लिये अभिनन्दनग्रन्थ का सुन्रपात वेद्य दामनारायण शर्मा ने दिया था जो उनकी सृत्यु होने के कारण यादवस्मृतिग्रन्थ के रूप में प्रकट हुआ 1 मेरी मेज पद एक १०० पृष्ठों का सुन्दर अभिनन्दनग्रन्थ रखा टुमा है । उसे उनके भक्तों, शिष्यो और गुरुजनों ने लेखबद्ध कर इस्लामपुर (झुझुनू) में रोगी सेवा मे सतत सलर्न आचायें वैद्य विरचीलाल शर्मा को अपित किया गया है । मैं भी इसमे अपना योगदान करना चाहता था पर आालस्पवश या भलबकडपने में नहीं कर पाया । पर अभिनन्दनप्रन्थ॑ निर्माणकर्च्री समिति ने कृपा करके इसकी एक घति मुझे भेज दी है । इसमे उन्हे एक स्थितप्रश महापुरुष की सज्ञा दी गई है । इसकी मगल कामना करते हुए लिखा गया है भ सिषग्वरोध्य विदुषां वरेण्यः पीयुषपाणि में क्ताच्छतायु। । शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्दजी वे उन्हे एक विलक्षण प्रतिमा लिखा है--तथा वैध्यी चसकरनरल के ही सती हसररे देश के आाुयंद-जगए के बोरस हैं ऐसर नउलर्या है 7 न




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