राज रत्नाकर | Raj Ratnakar
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.98 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)री
पेजाबप्रान्त--पडियाला | (५)
किक.
खजाना और अपना ,सब माल रक्षाके निमित्त मर्टिडि भेज दिया । जिनका
डर था वह तो . नहीं. बोछे, किन्तु स्वयं अमरसिंहकमा माई हिम्मतसिंह बडे
माईसे बगावतकर बेठा-भौर 'पटियाठेके किलेपर अपना अधिकार जमाना
चाहा । भन्यू कई सरदार भी उसके दारींक हो गये, किन्तु भमरसिंहने थोडेही
दिनोमिं इन सबकों परास्त कर दिया | उसी समय रणर्जातर्सिंहका सौमाग्य-सू्य
पंजावमें उदय हो चुका था । भमरसिंहकों पंजाव केसरीका झुरूद्दीसे बहुत भय
था, कईवार चेष्टा करनेपर भी रणर्जातर्सिहके सामने उनकी कुछ पेश न गईं ।
समरसिंदकी शत्युके वाद सन् १७८१ में साहवर्सिह गद्दीपर वेठे । उनके
'सासनकालमें राज्यपर बडी विपद पड़ी । सन् १७८६ में समस्त पंजावप्रां-
तमें घोर अकाड़ पडा था । अज्ञालके कारण पटियाला राज्यका बल बहुत
: कुछ घटगया । यह देखकर अनेक सरदार स्त्रतन्त्र होगये और राज्यकी वहडु-
तसी भूमि उन्होंने दवा ढी । साहबर्सिहने कोई चारा न देख, मराठोंकों
दिछीसे अपनी मददके लिये चुढाया | उन्होंने आकर समस्त बागी सरदारोंको
फिरसे जीत, पटियाला दरवारके सपुर्दे करदिया |
सन् १८०६३ में मंगरेजी जनरल छेकने दिल्लीपर अधिकार जमा
छिया | वहीं मराठों - और भंगरेजोमें एक संघिपत्र ज़िखागया । इसी
संघिकी तिथिसे भैंगरेजी राज्य यमुनाके पार बढ़ने ढगा । रणजातरसिंहकी
इ्रि बहुत दिनोंसे पटियाठेपर ठगी थी, इससे सन् १८०६ में वह सेना
सहित फ़ूड कियां राज्यपर चढगये । उसी समय नामा और पटियाढामें' कुछ
तकरार झुरू होगई | नाभा नरेशने रणजीतरसिंहको अपनी. सहायंताके छिये
_ बुढाया । रणजीतसिंह तो इसके छिये तैयार होकर निकड़ेही थे । नामाका सन्देश
_. मिठतेही झट फ़ुलकियां राज्यमें घुस गेये । ठेकिन अन्तमें नाभा और पटियाढाके
.नरेदोंसें मेठ कराकर छाहोर लौट गये। . -
सगडे वर्षे सन् १८०७ में पटियोडेके राजा और रानीमें कुछ विगाड हो
गया | रानीनें अपने पतिकों दण्ड दिलानेकें लिये रणजीतसिंहकों युढाया |
रणजीतर्सिद फिर सेनासहिंत सतढ्जके पार. उतर गये । सतढ्ज पारके छोटे
| छोटे राजा:रणजीतसिंहके इस तरह घड़ी घड़ी पार उतरनेसे मयमीत हुए ।
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