राज रत्नाकर | Raj Ratnakar

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Raj Ratnakar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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री पेजाबप्रान्त--पडियाला | (५) किक. खजाना और अपना ,सब माल रक्षाके निमित्त मर्टिडि भेज दिया । जिनका डर था वह तो . नहीं. बोछे, किन्तु स्वयं अमरसिंहकमा माई हिम्मतसिंह बडे माईसे बगावतकर बेठा-भौर 'पटियाठेके किलेपर अपना अधिकार जमाना चाहा । भन्यू कई सरदार भी उसके दारींक हो गये, किन्तु भमरसिंहने थोडेही दिनोमिं इन सबकों परास्त कर दिया | उसी समय रणर्जातर्सिंहका सौमाग्य-सू्य पंजावमें उदय हो चुका था । भमरसिंहकों पंजाव केसरीका झुरूद्दीसे बहुत भय था, कईवार चेष्टा करनेपर भी रणर्जातर्सिहके सामने उनकी कुछ पेश न गईं । समरसिंदकी शत्युके वाद सन्‌ १७८१ में साहवर्सिह गद्दीपर वेठे । उनके 'सासनकालमें राज्यपर बडी विपद पड़ी । सन्‌ १७८६ में समस्त पंजावप्रां- तमें घोर अकाड़ पडा था । अज्ञालके कारण पटियाला राज्यका बल बहुत : कुछ घटगया । यह देखकर अनेक सरदार स्त्रतन्त्र होगये और राज्यकी वहडु- तसी भूमि उन्होंने दवा ढी । साहबर्सिहने कोई चारा न देख, मराठोंकों दिछीसे अपनी मददके लिये चुढाया | उन्होंने आकर समस्त बागी सरदारोंको फिरसे जीत, पटियाला दरवारके सपुर्दे करदिया | सन्‌ १८०६३ में मंगरेजी जनरल छेकने दिल्लीपर अधिकार जमा छिया | वहीं मराठों - और भंगरेजोमें एक संघिपत्र ज़िखागया । इसी संघिकी तिथिसे भैंगरेजी राज्य यमुनाके पार बढ़ने ढगा । रणजातरसिंहकी इ्रि बहुत दिनोंसे पटियाठेपर ठगी थी, इससे सन्‌ १८०६ में वह सेना सहित फ़ूड कियां राज्यपर चढगये । उसी समय नामा और पटियाढामें' कुछ तकरार झुरू होगई | नाभा नरेशने रणजीतरसिंहको अपनी. सहायंताके छिये _ बुढाया । रणजीतसिंह तो इसके छिये तैयार होकर निकड़ेही थे । नामाका सन्देश _. मिठतेही झट फ़ुलकियां राज्यमें घुस गेये । ठेकिन अन्तमें नाभा और पटियाढाके .नरेदोंसें मेठ कराकर छाहोर लौट गये। . - सगडे वर्षे सन्‌ १८०७ में पटियोडेके राजा और रानीमें कुछ विगाड हो गया | रानीनें अपने पतिकों दण्ड दिलानेकें लिये रणजीतसिंहकों युढाया | रणजीतर्सिद फिर सेनासहिंत सतढ्जके पार. उतर गये । सतढ्ज पारके छोटे | छोटे राजा:रणजीतसिंहके इस तरह घड़ी घड़ी पार उतरनेसे मयमीत हुए । िद




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