रेणुका | Renuka
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.15 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रुक सुन श्यंगी - निर्घोब पुरातन उठे सृष्टि - हृत् में नव - स्पन्दन विस्फारित लख काल - नेत्र फ़िर काँपे चस्त अतन मन - ही - सन । स्वर - खरभर संसार ध्वनित हो नगपति का कैलास - दिखर । नाचो हे नाचो नटवर नचे _ तीब्रगति भूमि कील पर अट्रहास कर. उठ. घराधर उपटे. अनल फटे. ज्वालामुख गरजे उथल - पुथल कर सागर | गिरे दुर्ग जड़ता का ऐसा प्रलय बुला दो. प्रलयंकर नाचो हे नाचो नटवर घहरें प्रलय - पयोद गगन में अन्ध - धूम हो व्याप्त भुवन में बरसे. आग बहे झंझानिल मचे त्राहि जग के आँगन में फटे अतल पाताल धंँसे जग उछल - उछल कूद भूधर । नाचो हे नाचो बटवर प्रभु तव पावन नील गंगन - तल विंदलित अमित निरीह-निबल-दल मिट राष्ट्र उजड़े दरिद्र - जन आह सभ्यता आज कर रही असहायों का. शोणित - दोषण । पूछो साक्ष्य वरेंगे निश्चय नभ के ग्रह - नक्षत्र - निकर नाचो हे नाचो नटवर
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