महाकाल | Mahakal
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाकाल १३
से कभी वह् खद अकेला हौ, जीर कम्यो-कमी मोनाई बनिये के चिरंजीव न्याडा,
बगल में बस्ता दवाएं, नमूदार हो जाते हूँ । चपरासी खिद्ट हुफ्ता-भर से गाव
छोड़ कर चला गया है; तब से तीन कमरे तो खुले ही नहीं । कानाई
मास्टर जनवरी मं हो पांव छोड़ कर पछाह चला गया था । बाद में सुना,
सी० ओ० डो० में मिस्त्री हो गया हू ।
कानाई मास्टर हु बड़ा अच्छा अ(दभौ । जवं सारा गाव स्कूल ओर पाचू
के खिलाफ खडा ही यथा थातब कानाई दहारहो बक कर उससे हाथ
भिलाने आथा था । पच् को आंखो के सामने वहु तस्वीर साफ़ शिच गई, जवं
चहं ओर कानाई दिबू पंडित की पाठशाला मे एक साथ पठते थ । कानाई दिव्
नडित को पाठशाला से अंग न पढ़ सका; मगर उतने में ही चह मजे की बंगला
लिख-पढ़ लेता था । बाद में कानाई का पढ़ ना-लिखना छुड़ा कर बाप ने उसे अपनी
चिद्या देकर सिस्रो बना दिया--एसा कि दो-चार-पांच गांवों में कानाई मिस्त्री
का डंक्रा बजते लग । अपने साथ के पढ़े-लिखों में पांचू कॉलेज में फ़र्ट आया
था जोर सरकार से वज्ञोफ़ा छेकर उसके बिलायत जाने को भी कछ अफवाह
कनाई ने सुनो थी ।
पाच जम से गांव मापा हुं; कानाई उससे मिलता तो इस तरह मानों पॉचू का
सहुयाठी होने के नाते उसे सी आत्मगौरव का बोध हो रहा हो । यह बात
हूमरीहं कि कनाई उससे मिलता कम ही था । दित-भर अपने काम में
फंसा रहता था 1
पानं बर्न् करन् के किए कान साप्ताहिक 'दिश' को प्रह बन गया भाः,
सो हुफते-भर मे एक-एक विज्ञापन तक घट के एो जाता था । जब से दिशः
उसके पास आने लगा, तन से किसी जक, किसी भी पेज, कविता-कहानी, लेख,
नटक्-फाटकः से केकर चिह्लापनं तकः किसी विधय भे कानाईं मास्टर कोक्तर
कतो छेड़ भर दे सोर फिर देखें कि खट से मशीन चालू हो जाती हूं ।
पांचू ने एक ब,र उसका रिकार्ड स्थापित करवाया था । आनन्द सटः पूरः
फा पूरा एट करलुताने के लिए उतने कानाई मास्टर को चेलेन्ज दिया । उस नभः
User Reviews
No Reviews | Add Yours...