आपका व्यक्तित्वः विकास के सूत्र | Apka Vyaktitv Vikas Ke Sutr
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ञान का अध्ययन : 17
भौतिक विज्ञान तथा रसायन-शास्त्र आपके मन को प्रशिक्षित बना एगे,
ताकि भाप प्राइतिक नियमों के सुल लक्षणों को समझ सकें, कारण-कार्य
के नियमों को हृदयगम कर सकें, प्राकृतिक परिव्तेंनो के काल-क्रम निममों
को जान सकें और इनके प्रभावों का ज्ञान प्राप्त कर स्वों । तव आप जादू
और करिश्मों में विदवास करना छोड देंगे, जिनका वर्णन अनेक घामिक
पुस्तकों में मिलता है । आपको ज्ञात हो जाएगा कि कोई भी पवित्र मनुष्य,
चाहे वह ईसाई हो या मुसलिम, या वौद्ध --शूत्य में से मछलियां या रोटी
के टुकड़े पं दा नहीं कर सकता, पानी पर नहीं चल सकता, वायु मे नहीं उड़
सकता, चांद के टुकड़े नही कर सकता, नदी को नहीं पी सकता, तूफान या
वर्पा नहीं ला सकता, अपना लिंग (स्त्री या पुरुष ) नहीं परिवतित कर सकता,
अपने को अदृश्य नही कर सकता, लकड़ी वे दुक्डे की लवाई नही वा
सकता, धरती मे उपजाऊपन नही ला मकता, पैदा होते हौ चातचीत नहीं कर
सकता, विना कनी के केवल उंपलियो से ताला नही खोल सकता, धूप पर
अपने लवादे को नहीं टाग सकता, दाब्द या मन्त्र द्वारा स्त्रियों का बाझपन
नहीं दूर कर सकता, और मरे हुए को नही जिला सकता । भौतिक विज्ञान
तथा रसायन-शास्त्र के अध्ययन के अनन्तर इस प्रकार के अचम्भे या क रिश्मे
में आपको विश्वास नट्दी रहेगा । भौतिक विज्ञान तथा रसायन-शास््र मे
इस पाखण्ड कौ सदा के लिए इस मूढ विद्वास फो पोल खोल दी है कि
{< गणी सन्त प्रकृति के नियमों के विरुद्ध कोई करामात दिखला सकता
डै।
नक्षत-विज्ञान
नक्षत्र-तिन्ञान आपके सामने एक विराट ओर विस्मयकारक राउय
का उद्घाटन करता है । इसका चमत्कारपूर्ण आकर्षण अथाह है,
अपरिमित है । इसका अनन्त क्षेत्र मानव-प्रज्ञा को एक चुनौती देता है ।
नक्षत्र-विज्ञान पर आपको वहुत-सी प्रसिद्ध तथा अर्धवेज्ञातिक पुस्तकी का
अध्ययन करना चाहिए और आपको दूरवीक्षण यन्त्र द्वारा ग्रह-नक्षत्रों को
अपनी आखों से देखने का प्रयत्न करना चाहिए । आपके जीवन में आनन्द
की लहर आएगी, जव आप अन्तरिक्ष मे अतिरिक्त तारो (स्थूल आख
सैन दिखाई देने वाले सितारो) कौ देखेभे या यह देखेंगे कि ध्रुव तारा
वस्तुतः दुगुना है । किसी एेसी वञञानिके सस्था के सदस्य वन जाइए,
(तियत व्या शरिण्यनन नत पे समीर र -----> पा
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