बाईसवी सदी | Baisvi Sadi

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Baisvi Sadi by राहुल संकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० बाईसवीं सदी लिए विद्यालय में षले जाते हैं और बीस वर्षकी अवस्थामें शिक्षा समाप्त होने पर उनमेंसे बहुत कम अपने जन्मके गाँवकों लौटते हैं । जिनकी जिस विद्या और शिल्पकी ओर रुचि हुई, वे उसी तरहकी बस्ती में जा बसते हैं ? “तो जान पड़ता है, अब सभी बातोंमें पुराने जमानेसे अन्तर हो गया है । अच्छा, यह तो बताओ, इस समय नेपालका राजा कौन है? “नेपालका राजा ! 'राजा' णब्द तो अबे पुस्तकोंकी ही शोभा बढ़ात। है । अब राजा कह ? “अच्छा, ये बाग किसके हैं ” '' अब तो सभी चीजें राष्ट्रीय हैं, सिर्फ बाग क्था? यह धर, कुर्सी, पलेग, लडके, स्त्री-पुरुष सब राष्ट्र के हैं ।' “तो राष्ट्रका संचालन कसे होता है ?”' 'हमीं लोगों द्वारा चुने गये पंचोंकी पंचायतोसे । ग्राम, जिला, प्रांत, देश, अखिल भूमंडल सबका संचालन इसी तरह होता है ।” “क्या भूमंडलका एक ही राष्ट है? हाँ, आज सो वर्षसे । अच्छा, तो अब हमे आज्ञा दीजिये, हम लोग भी अपना बचा काम समाप्त कर आवें । (घड़ी देखकर) चार बज गये, पाँच बजे हम लोग यहाँ से चलेंगे । मैं अभी ग्रामणी को आपके मिलने की सुचना देता हूं । शामकों वहीं विश्वाम करना होगा ।'' “हाँ, आप लोग अपना काम करें । मैं मजेमें यहाँ बठा हूँ ।'' सुमेधके उठते ही सभी लोगोंने बागका रास्ता लिया । सुमेध ने टेली- फोन की घंटी बजाई । जिसका उत्तर भी तुरन्त मिला । उन्होंने चुपकेसे न जाने क्या कहा । फिर कुछ सुनकर मुझसे बोले-- “हमारे ग्रामणी देवमित्र आपसे कुछ बात करना चाहते हैं । मैं तो अब काम पर जा रहा हूं।” यह कह वह भी कामपर चले गये । मैं ररेडियो-फोन' के पास गया । वरहा देखता ह, एक शीशेपर एक मनुष्यका प्रतिबिम्ब है । मै चकित होकर




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