सूर्यप्रकाश परीक्षा | Suryaprakash Pariksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ 11 |
करते हैं ओर जिस आधारपफर वें अपनों सत्यताके गोत गाते हूँ
उस आधार को काटने तकके लिये तैयार हो जाते हैं !
“जैनघम एक वैज्ञानिक धमं है” इस बात को वे लोगभो
वङ् गोरवक्र साथ कदे ह जो विलश्ुःल अन्धश्रद्धालु है, आर
दूसरों की जालोचना करत समय जो परीक्षाकी युक्ति-तकंकी
दुद्दाई देने हैं । परन्तु जब किसी निः्पक्त परोक्तास उनके अन्ध
विष्वासक्रो या स्वाथंको धक्का पद्ुचता है तव उनका हृदय
निनमिला उठता है | थे शास्य की परोक्ताका पाप कष्ठे लगते
हैं। इस समय उनकी दास्यास्पद मनावृत्ति एक तमाशा बन
जाती हैं ।
इस दुर्मनावृत्तिसे म्त होकर ये चिल्लाने लगते हैं
कि “बस ! परोक्षा मत करो । परीक्षा करना पाप है । सर-
स्वतीक्रों परीक्षा करना माताके सतत्वोकों परोक्षा करने के
समान निय है | जब हम मा बापकी परीक्षा नहीं करते तब
हम सरस्वतीको परोजा ऋरनेका क्रय हक हैं? दुनियाकि
स्रकड़ो काय थिना परोक्षाक हो चलने हैं आदि ।”
अगर काई वनयिक, सिथ्यात्वों या जानानिक सिथ्यात्वी
इस प्रकारक, उद्धार निसतलता तो उसकी इस सनोवुत्तिकों
अनुचित जहत हृष लौ हम क्षस्य समदत । परन्तु जा पकान्त
या विपरीत मिध्यान्वौ ए और अपनेका स्स्यकत्वी विवेकी लानों
समझने हैं तथा अपन पक्षका मंडन अगर पर-पच्तका रवंडन
कर्ते हैं, जब वे परोक्षाका पाप कहने लगते हैं तब उनको यह
निर्टजजता उस सोमा पर पहुँच जानो है जिस देस्वकर
निलंज्जता भी लथ्जित हो जावे ।
अरे भाई ! मा वापकी परोक्षा न करना तो ठोक, परन्तु
जगन्म खसा कान प्राणो हे जो जीवन अधिका कायं
परीक्ता-पृचंक न करता हो । एक कौड़ी नौ जव कोई चोज्ञ
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