अकेला चलो रे | Akela Chalo Re

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Akela Chalo Re by रामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आत्स-समपणको दोक्षा ७ हम ता० १५-१२-४६ के दिन कलकत्तेै ल्मे रवाना हभ 1 कर कन्तेसे नामाखालो जानेके लिअ हमारे साथ खादी प्रतिष्ठानरे अक माग्रदगक आये। कलक्तसे काजीरखिल, जहा गाधी छावर्नीका मुख्य केद्र था, पहुचनेमें २४ घटे लगे। और सफर भी वहुत ही कठिन था। अन्तर्म ता० १९-१२-४६ को दोपहरके काओ तीन बजे हम श्रीरामपुर पहुंचे, जहा बापूजी ठहरे हुमे थे। यह घय दिवस जीवनके जेक सुनहले दिनके रुपमें हृदयमें अक्ति हा गया । २ आत्म-समर्पणको दीक्षा श्रीरामपुर, १९-१२-४६, गुरुवार हम जद दोपहरके तीन बजेके करीब वाधूजीके पास पहुंचे, तव बापूजी जैवं तस्त पर वे अकेठे ही चरवा चला रहं ये नौर आसपास आओ ० बेन० मे० (आजाद हिन्द फौज) के कुछ लोग तया कनल जीवनसिंहजी चगरा यातं क्रतं हुभे बापूजीसे प्रश्न पूछ रहे थे। वे सब बापूजीवे साथ जिस काममें गारीक होना चाहते थे। सब बातोमें तल्ठीन थे । हमने अुस योपडीमें प्रवेश किया । झोपडीकी देहलीसे वापूजीकी बैठक कामी चार फुट दूर थी। म वहासे सीधी वापूजीको प्रणाम करने दौडी 1 बाघूजीने ओक जारकी धप लगाओ, कान पकड़ा शुनकों प्रेमपूण घपत गाल पर पड़ी और गाल सीचकर वाले, जाखिर आ पहुची ! बन साहब्से कहने रगे, यह लडकी यहा मरनेकी तयारी करके आओी है जिसलिजे आप लांगोंके दो मिनट छे लिये ! अब जाप वात कहिये। ” पाच-सात मिनटमें वे सब चले गये। बादमें बापूजीने मेरे स्वास्थ्यके समाचार पूछे। मने पूछा आपको कसा लगता है? 'जैसीकी तसी है, परन्तु समतता है वजन बढा होगा“ किसके बाद मेरे पिताजीसे बोरे, कव चरे थे? रास्तेमें भीड तो नहीं थी * मनुडीका पत्र मिछा था। यह निल्लो आभी थी तव भी अपने




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