श्रीपाल चरित्र समालोचना | Shrepaal Charitra Ki Samalochana
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
696 KB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
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No Information available about बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ ( ४ )
रूस दासी के पास से दासत्य कराने दो वास सदा ट्याय में रखना ज६ 9८ 2 2८
पर्यादय, युद्ध थीर धर्म फा कभी विशद्ास ने बरना और सास फहते फी घात ड़
है कि जा जाति हा सभाव चहुत हो चपन दाता हैं इसलिये फ्सी स्त्रापर पिएयास
नवरवां। बडी का माता युयती का यढिन और छोडी को पुधी समकना और वतन
से बरायर चार परस शिएकर इसी तिथि को यापिस घर लौट झाना । यदि
माप यणो छौ हो नामे तो मैं वनो को दोक्षा ले उूगी'” इग शरद में से प्रत्येक
शब्द कहानतापू्ण है । सारी पीनि और सम्पूण अध्यारमर्शारा के शाता पत्ति फी सो
(जो स्वय सो अन्याहिमिक घाग में पूण यताई गई दै $ पति पर अयिएयास करते उस
का शील पाली करी शिक्षा दती हू यद पक आाध्यय्य है ' स्वय खां हाते हुए भी उस्नें
ख़ियां की मान द्ानि फरने चाउे बाइद “खा जाति चाल दाती हैं इसलिये किसी सा
बिश्यास नहीं करना” उध्यरण दिये यद दूसरा थाथ्चर््य है स्त्रा का अर्थ हू दासस्य
फरने वालो दासी” ऐसी ब्याप्या भी पत्र जैप घर्माजुयाया के लिया यदि कोइ दू
सदा केषर लिखता तो चद मिथ्यारयो, सूख, सचियेकी गिया जाता। खेर फुछ सी
दो मगर इतना उपदेश मिलने पर भी--शीत्यन पालक कर्वे फी साम सूचना सि
लगे पर भौ--यद चरमशरोरी मदात्या तो ऊपरी २ हजारों खियीं का पाणि मद
करता दी गया । यह मो दीपाल की लियाकत का एक अच्छा पमूना दै। जिसके
सूप का श्रोपाद ने स्वय चणा किया दे जिसके मस्पेक गड्ढे की श भा का चणा के
शते श्रीपाना स्वय दीं लजाया जिसके प्रताप से दो स्वय जीचित रहा भौर नययोचन
पाया पेस) सालदू चरस की पतिपरायण री की छातो पर दनारों सौतों का साल
रखना सता चरमशरीरी श्रीपाल के सिवा अन्य कौप पुदप कर सकता था * अस्तु ।
श्रीपाठा सहला दी रचा एप होगया । सनेक यन, पवत, शुफा, सरोवर, खाई,
नदरी, शदर गदि सं गुज्र्ता हुमा पेद हो चतर वत्स7गरमें पटुचा। वहा.
म्पकनामक्चामें उसने किसी 7पयुररूकोज सि वस्रामुषणोसे गरन द्यैरहा
चा-मत्त्र जपते हुए देखा 1 धीपाल के एूउने प८ उसने उत्तर दिया--'हे खामिन !
{ अजान पुंदप को पदिक दी घातय मे खवानिन कदकर स्म्यधरत कटे यदमी पफ
माश्चर्य है | ) मेरे युद ने विद्या का सन्त दिया है मैं उससा ज्ञाप कर रहा हट, परन्तु
मेरा मन चञ्चल एर जगद् स्थिर नदी रहता इसक्तिये मरन नद्ध नदीं दाता, इस
लिये थाप इस पिया को सिद्ध परें; परपोंकि जाप सदइनशी दिखाई दते द
लाताकानो करने के चाद श्रीपाल मन्य खिद्द करो ये दिये दा और व पक ही
दिते लिख दोगया 1 यद सिद्ध मिदया फिर उ सने उस चौर ( वियाघर ) को
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क ॐ
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