जैन धर्म शिक्षावाली - भाग 3 | Jain Dharm Siksavali Bhag 3
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नेको में नाम कमाशओ । १८
झधमास्तिकाय-उसे कहते हैं जो स्वय उदरते हुए
घर पुदुगलों को उदासीन रूप से ठहरने में मदद दे । जेसे थफे
हुए सुमाफिर को पेढ़ फी छाया ठद्दरने में सद्दायफ दोती है
यह पदार्थ भी एक है और तमाम लोर में पाया जाता हे !
झरूपी दोने के कारण भ्रां से नहीं दियाई पढ़ता ।
धर्मात्तिकाय-भ्रघर्मास्तिकाय जीव पुदुगल गे
प्रेरशा करके चलाते व उदराते नहीं है । परन्तु जम पे
चलते या उदरते र व॒ उनरी मदद अवश्य करते ई ।
चात पद्द है कि घर्मास्तिकाय न दो तो हम चल फिर नहीं
गा श्र अधर्मास्तिकाय नदीं हो तो दम ठहर नहीं
सकते ।
( यहाँ धर्म से पुण्य और श्रघम से पाप नहीं समझना चाहिए । )
याकाश-श्राकाश उसे कहते हैं जो सब चीजों को
जग दे श्र्याद् जिसमें सब चीजें रद सकें । यद एक
खणड श्र ्रनन्त द्रव्य द ।
श्राकाश के दो मेद है-लोराक्श चीर श्रलोकाकाश
लाकाकाश-भाराश मे जरो तक पुद्गल, ष्म,
शधर्म, चाप्, सल शौर जीपये छ, द्रव्य पाये जायें
उतने थाकाश को लोकाराश कहते हैं ।
” आलोकाकाश-जलोक के बाहर बचे हए अनन्त
झाकाश को अलोकाकाश कहते. दे ।
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