अकेली | Akeli

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Akeli by राजेन्द्र यादव - Rajendra Yadav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे रसाए मोर पदायों बस दो घोर योना, पहमे वो दीजिए ।' नदर, पम देय । सन हो सन सरताहर उसमें रहा यहाँ प्रागर उसे जो 'मुर्दोसी' झा सदा खिनाद सिता, उसे सुनवर उसकी पारमा खाव को जानी । 'मुर्ो' सलाम के साय जो एव बन पर बसम सदाए, गोउन्मंल! टोपी, पुराना वोट पाले, सुदेशुडे घाइसी की सम्योर सामने पाए है, उसे योरनयाईस खाए का पुपर गोविंद ससाय मही काना) गाउा रपाराम उसोडे सोव के है, घायए उसने पिया थे साय दो तीन दसात पढे भी थे । भर धार हो पार्मनिमर होगर पढाई पता गम मे लिए गिम टुयूरस इस्याि दा दोडे पाईनटाइस पास के लिए लावा पारस दे मी यह दिया, सो उरहोन धरयरते उम्मार से उसहें शूग पाप को याद गरे पा. “ भेंदा, सुम सो पपन हो यरने हो, जरा मागो परी था लिसारनविताय पड़ पाप पर दस दिया परी घोर मे में पररी के बाग जी कोरी है उसमे पढें रहो । घपते पदों । पट पी गरां तो प्सी है हो नहीं । पीर धरयर्स हतशता थे गदुगद दवपर्‌ उनको कारनस्य गदादापरतो रोते हिसाय लिखने का एस सेसेर कपापमर र्द पवि निहदरन रे उसके सामते पी जा, गम जीजो से बहा है, ससे बुद्ध घोर भाग हुए सांप रधाराम सावियादिरदवात चर्म मदे-मदे मपो मर्वे यदो दोषतो एवा घोर मोटे होटो से मगयदातिर द्यवा सम्मान पटातषा तीः वटप्टरेचोषर मौत गदाामरिनि उलन निश्वयदर विदि याजमराने कृ दारज्नि्रवा से इस दाद पा फिरोय बरेंगा । रामरदस्य में मुताः सलाम सुनकर उष्णः भोपत, दमोह समते उपशा से यह उसर दिया पाये *वय शहर दौजिएया । रासस्दरय से फिर घनुसोध दिया । पई, जहर दंगे ।' उदग्ने दाक पोगङर बटन पटा. मग्न ११




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