ओ अहल्या | Oh Ahalya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रजापति | १५
विश्व-मण्डल में सृजन का हेवु हूँ
जेय होकर पूणं दुविज्ञय हूँ मैं
साधना की सिद्धि द्वारा नित्य हूँ मैं,
हैँ मैं
मैं स्वयं विधि ओर इष्ट विधेय |
जब सुरों ने असुर-सेना को हराया,
था उन्हें निज शक्ति पर. अभिमान भारी ।
यह न जाना था उन्होने एक क्षण भी,
यह सहज ही ब्रह्य की थी शक्ति सारी ॥।
ब्रह्म ने ही जय दिलायी है सुरों को,
सत्य का साम्राज्य जिससे सृष्टि में हो।
धर्म की. धारा प्रवाहित हो निरन्तर,
शान्ति का सन्देश सुख की वृृष्टि में हो ॥।
उन सुरों के हृदय में भारी विजय का,
जो महत्तम गवं थां उर में समाया।
दूर करने हेतु प्रभु ने ली परीक्षा,
यक्ष बन कर ही रची थी एके माया ॥
आज भी वहं क्षण न भूला जा सका है,
जब उन्हें प्रभु ने परीक्षा में कसा था।
अग्नि को, फिर वाथु को, फिर, इन्द्र को भी--
यक्ष बन कर--भाग्य भी उन पर हूँसा था ॥
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