संचयिका भाग १ | Sanchieka Bhag-1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Sanchieka Bhag-1 by इन्द्रसेन शर्मा - Indrasen Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about इन्द्रसेन शर्मा - Indrasen Sharma

Add Infomation AboutIndrasen Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
2 संचयिक , खेत में मिला था । उन्होने उससे कहा था, भाई ! थोड़ा गन्ने का रस पिला सकते हो । हाँ . . . हाँ . . . आप बैठिए । मैं अभी लाया ॥ अकबर एक पेड़ की छाया में बैठ गए । वह किसान खेत में गया । एक गन्ना तोड़ा और एक बड़े लोटे में रस निकालकर ले आया । अकबर ने गन्ने का रस पिया तो बहुत खुश हुए । अरे वाह ! ऐसा रस तो हमने पहले कभी नहीं पिया । जी, और यह सिर्फ एक ही गन्ने का रस है ।' क्या ?” एक गन्ने में इतना सारा रस ! अकबर को आश्चर्य हुआ। मैं बिल्कुल सच कह रहा हूँ , हुजूर ! ” कमाल की बात है | ये हमारे बादशाह की नीयत का कमाल है जनाब । अगर उनकी नीयत ठीक न हो, तो गन्नों में रस ही न निकले । अच्छा, कितना लगान देते हो ? जी, लगान तो सिर्फ पच्चीस पैसे ही देने पड़ते हैं । सिर्फ पच्चीस पैसे ! बादशाह ने हैरान होकर पूछा । फिर वे सोचने लगे कि' ऐसे रसवाले गन्ने के खेत पर तो काफ़ी रुपए लगान लगाना चाहिए। ठीक है, आगरा पहुँचते ही इसका लगान बढ़ा दूँगा । कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद अकबर ने कहा- अच्छा भाई, चलने से पहले ज़रा एक लोटा रस और पिला दो । किसान लोटा लेकर चला गया । उसने एक गन्ना तोड़ा लेकिन इस बार लोदा न भरा, फिर एक के बाद एकं तीन-चार गत्रे तोड़े ओर उनका रस निकाला, फिर भी लोटा न भरा । अकबर उसका इंतजार कर रहे ये । सोच रे थे - इस बार तो इसने देर कर दी । तभी किसान मुँह लटकाये हुए आया और लोटा बादशाह की तरफ बढ़ा दिया । लोटे में रस थोड़ा-सा ही था । अरे ! क्या बात है ? इतना कम रस लेकर क्यो आए ?




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now