श्री इष्टोपदेश टीका | Shree Ishtopdesh Teeka
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(1७)
मुनेछाक जिनेश्वरदास, गोटावाढे, विक्टोरिया सीट |
, < बरातीलाहं जैन एण्डको ° भनरर भरट महियांन।
बरातीरार चिरजीरार बरतनवरि, धमीनाबाद् |
ला० दामोद्रदाप्ीमे एक विशेष गुण यह था कि दे
इस तरहसे भन्योफि -साथ व्यवहार फते ये कि उनका कोई शत्रु
नहीं होता था किन्तु सबे मित्र ही रदते थे । सभामें भापके भाष-
णका ऐसा असर पढ़ता था कि जिप्त कार्यको आप मनमे ठन हेते
थे कि होना चाहिये उप्त कायेको आप करके ही रहते थे, बढ़े २
कठिन कार्योमें छोग आपकी सम्मति हेते थे, भाप कचहरीके कार्यों
बढ़े चदुर थे। वकीछोंको भी आपकी सम्मतिसे काम पहुचत। था ।
शरेतताम्बर नैन समानके साथ नो शिखरनीकी पूजाका मुकदमा
चला था, उसमें आपकी प्रमाणिक गवाहीका हाईकोरटोके जर्गोपर
भी भर पडा है | धर्मके कार्यमें आप हरतरह मुततेद रहते थे ।
लखनऊ 'जो कुछ धर्मकी रौनक थी वह पव शापे गाढ परयः
लक्ञा फल था । भाप चे समाप समापदभि हन्तनाएम ॐ रहते
- य, कमी घव्हति न ये । आपके पेये एते ही रलनञ माव
: उसके आधीनकी संस्थाएं बराबर चरती रहीं जीर णवत वे च
रही है जिसमें प्रयन उनहींके सुपुत्रका है । पथ दै धमासा
रपे पन्ये उदये कमी कमी २ उनके प्श पतर दी होत
है। आप इतने परोपकारी थे कि अपनी जातिमें व अन्य कोई
भाई या बहन जापसे द्रव्यकी इच्छा करते तो भाप फोरन उधार
देकर उसका काम निकाठ देते ये | नेन समाचार पा बरार पठते
थे | यदि कोई कट व हानि हो नादी थी तो आपका मन मेद-
विज्ञानसे उत्तका दुख नहीं मानता था । णप पदा प्प्जषुत
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