सहज सुख साधना | Sahaj Sukh Sadhan

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Sahaj Sukh Sadhan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| सहज सुख साधन ५ ' ससार स्वरूप ` নগজী की निर्दयतामे वलि करता हुआ व शिकार में पशुओं का घात करता हुआ व मासाहार के लिये पशुओ 'का वध करता हुआ बडा ही प्रसन्न होता ह | हिसानन्दी व्यापारी पशुओं के ऊपर भारी बोका लादकर उनको मार-मारकर चलाता हे। भूखे प्यासे होने पर भी अन्नादि नही देता है । < खी करके अपना काम लेता हे । हिसानन्दी ग्रार्म मे, वन में आग लगा कर प्रसन्न होता है । थोडी-सी बात मे क्रोधित हों मानवो को मार डालता है । जगतमे हिसा होती हुई सुनकर प्रसन्न होना, हिसानन्दी का भाव रहता है | हिसानन्दी व्यर्थ बहुत पानी फेक कर, भूमि खोदकर, अग्नि जलावार, वायू को आकुलित कर, वृक्षो को काटकर प्रसन्न होता है। हिसानन्दी के बडे ऋर परिणाम रहते हे । यदि कोई दोषी अपना दप स्वीकार करके आधीनता में आता है तो थी उस पर क्षमा नहीं द वा है भौर उसे जड्मूल से नाश करके ही प्रसन्नता मानता है। २--मृदासन्दी--जो असत्य बोल करके, असत्य चुलंबा वर 7, । [नव बोला हआ जानकर व सुनकरके प्रसन्न होता है वह मृषानन्दी रोद्रव्याली हे । मृपानन्दी घन कसानेके लिये भारी असत्य बोलता है,उसको दया नही आत्ती है कि यदि इसे मेरी मायाचारी विदित होगी तो कष्ट पाएगा १ मृषानन्दों टिकटमास्टर मूर्ख गरीब ग्रामीण स्त्रीको असत्य कहकर अधिके दाभ लेकर कम दाम का टिकट दे देता है। भृषानन्दी भकूठा मुकदमा चलावर, भूठा कागज बनाकर, भूठी गवाही देकर दूसरो को ठग कर बडा प्रसन्न होता है। मृपानन्दी हिसाव-किताब मे भोले ग्राहक से अधिक दाम लेकर असत्य कहकर विश्वास दिला कर ठग लेता है । मृषानन्दी गरीव ' विधवा के ग का डिव्ना रखकर पीछे मुकर जाता है ओर उसे घोखा देकर बडा ही अपने की चतुर मानता है। मृप्रानन्दी मिथ्या धर्म की कल्पनाओं को इसलिये जगत में फंजोता है कि भोले लोग विश्वास केरके खुब घन चढाएँगे जो मुझे मिल जायगा । उसे धर्म' के बहाने ठगते हुए कुछ भी दया नही आती है ।, + চা ' ঠা | इ--दौर्यारन्दी--चोरी करके, चोरी कराकेवचौरी हुई जानकर गी प्रसन्न होता है वह्‌ चौ्यानन्दी रौद्रध्यानी है। चोयरनिन्दी अनेक प्रका के जाला से चाहे जिक्तका- धनं र्विना विचारे गलता हि, दिके बुरा लाता है, डाका डालकर ले लेता है, प्राग वव करके ले लेता है, छादे-




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