श्री मेघमहोदयो-वर्षप्रबोध | Shree Meghmahodayo-Varshprabodh
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
532
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ श्री वोतरागाथ नम: का
!! श्रीमेचसहोदयो-वर्षघ्रबोध:॥
( माषाटीकाससेतः )
यन्थकारस्य मंगलाचरणुमू |
सी तीयेनाधवूबस प्रसुमाश्वसेनि,
. शह्ेश्चर नतसुरेन्द्रनरेन्द्रचन्द्रम ३
ध्यायन् सपेवरविजय सुखमावकुदद,
शास्र कसेभि किल सेचमहोदयास् \ १ ॥
येना प्रसुपाभ्यमाप्तनषथं चिन्धैकररं हदि
रमारेस्मारमहनिंदो पडुधिया भव्यः सखलभ्यक्यते १
तरेधा तस्य स्ुवणसिद्धिकमल्य मेधावलात् पधे,
राजट्रालसभाखु 'माखुरतया कीर्तिसेत्यते ॥ २१
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यत्वा जिनेन्द्र प्रयुपाशनाधं, देवाुरैर्चित्तपादपदमम् |
वरपप्रवोधत्य करोमि टी क्न, वालावक्छैवाय सुभापयाहम् ॥ १ ॥
-मावा्र-- देवेन्द्र नेन्द्र ओर् चन्द्र श्राह जिन को नमस्कार करते
हे, देसे धशेन्दरं पावती सहित तीर्थकर श्री शलेश्वरपाश्वनाथ प्रु का
ध्यान करता हुआ, मेच के उदय के घर्थ को सुखपर्वक जानने के
लिये मै ८ महामहो पाध्याव श्रीमेवविजयगणि *) सेघमहोरय है चै
गजस का पेसे मेवपहोत्य नमि केकर को बनाता हूं ॥१॥।
ग्रेट में श्रेड और जगत् में एक वीर ऐसे श्रीपाश्वेनाधप्रमु को
च्य मे रिन्त स्मरण करके ज बुद्धिमान इस ग्रन्थ का अभ्यास करता
है, उसको तीन प्रकार की विद्या, सिद्धि चौर लक्ष्मी चुद्धिल से प्रात
होती है, और वड़ी २. शोभवमान राजसभाओ मे विशेष प्रकाश
रूप से उसकी फीसि भी अत्यन्त नाचदी है ये फेलती है ॥ र ॥
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