धर्मतत्त्व की भूमिका | Dharmtattv Ki Bhoomika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्मतत्वं पर माषे विचार {११
मील चलती है। ऐसे भी नक्षत्र हैं, जिनकी ज्योति हमारी प्रथ्वी तक
र,००० वर्षो से भी 'झाधिक समय में पहुँचती है। संसार के सब लोकों को
देखते हुए सैकड़ों मन अनाज में एरथ्वी एक मटर के समान है 1 इधर देखिए,
कि पृथ्वी हो पर असंख्य पदाथं प्रस्तुत हैं जिन के विषय में हमारी बुद्धि पंगु
ह । एक एक कान, हाथ, नाक, आँख, हदय आदि में इतनी भारी कारीगरी है
कि सममे नहीं अती 1 प्रकृति कभी पुनरुक्ति नदीं करती 1 अरबों-लर्बो घास
के वलो कोभी लीजिए तो कोई दो दल पूतया समान नहीं भिलेगे । इतना
बड़ा संसार ऐसे दृढ़ नियमों के साथ अरबों-खरबों सालों से उन्नति करता
चला जा रदा है, किंतु कोई राड़बड़ नह्दीं पड़ता । भूाल, ज्वालामुखी आदि
के जो छोटे-मोटे मामले हमें गड़बड़ समभ पड़ बे भी न तो वास्तविक अक्रम
हैं, न गड़बड़ । इतना भारी क्रम स्थापन न तो आप ही '्याप हो सकता है
न किसी अंध शक्तिके द्वारा । संसार हमारे सामने एक महती सेना के रूप में
दिखाई पड़ता है । केवल सेना को नियम-पूर्वक क़वायद करते देख कर ही हम
किसी नियंता सेनापति का ढ़ अनुमान कर सकते है, क्योंकि बिना नियंता
के नियम नहीं दो सकते । छाप से माप अंघ-शक्ति के द्वारा इतना मारी कार-
बार नहीं चल सकता । इसे धारण करनेवाला तथा नियम पर चलानेवाला
कोई नियंता वश्य है ! इसी को धृत्यायोजनवाद्* कदते है जो हमारे यद्य
कठोपनिषत् मेँ साफ़ साफ़ मंत्र नं० ११४ तक कथित है । गीताः ( ५ १३ )
म भो यह् तकं आया है, यथा,
गामाचि्यश्च भूतानि धारयाम्यहमोजसा 1
अर्थात् मैं थ्वी मे भवेश करे सामथ्यं से समस्त भूतो को धारण
करता ह|
परमात्मा की सत्ता का इस से बढृकर प्रमाण चज तकत नहीं दिया
गया है। -
१26७787.
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