तत्त्व चिंतामणि भाग ४ | Tatav Chintamani Part IV
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
750
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाराज युधिष्टिस्के जीवनसे मादशें दिशा १९
वी यथादक्ति रक्षा करना सभी क्षत्रिय राजाओका महान्
कर्तव्य है | शत्रुकी रक्षाका मात्य तो ओर भी बड़ा ह]
मैंने यदि यदद यह आरम्भ न कियां द्वोता तो मैं स्वय दी
उस बदी दुर्भोधनको छुड़ानेके लिये दौड़ पड़ता) पर
अव्र विवशता है । इसीलिये कहता हूँ; वीरवरो । जाओ---
जल्दी जाओ; दे कुरनन्दन भीमलेन } यदि वह् गन्धर्वराज
समझानेसे न माने तो ठुमलोग अपना प्रबल पराक्रम
दिखलाकर किसी तरह अपने भाई डुर्येघनको उसकी
कैदसे छुडाओ ।* इस प्रकार अजातशत्रु घ्मराजके इन
वचनोौको सुनकर भीमसेन आदि चात मादयोके सुपर्
प्रसन्नता छा गयी | उन छोगेक्रि अधर ओर
भुजदण्ड एक साथ फड़क उठे । उन सबकी
आओरते महावीर अयने कदा--“मदाराज [ आपकी
जो आज्ञा 1 यदि गन्धर्वराज समश्चाने-ुन्चानेपर
दुयौघनको छोड़ देंगे, तब तो ठीक दी है; नदीं तो यद
माता पृथ्वी गन्धवैराजका रक्त पान करेगी ।› अर्जुनकी इस
प्रतिक्लाको सुनकर दुर्योधनके बूढे मन्त्री आदिको श्वान्ति
मिरी । इधर ये चारो पराक्रमी पाण्डव दुर्यो धनको मुक्त
करनेके स्यि चर पड़ । सामना होनेपर अर्जुने धर्मराजके
आज्ञानुसार दुयोधनको यौ दी मुक्त कर देनेकै लि गन्धर्वोको
बहुत समझाया; परन्तु उन्होने इनकी एक न सुनी | तब
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