भारत की सम्पदा - प्राकृतिक पदार्थ पूरक खण्ड | Bharat Ki Sampda Prakritik Padarth Purak Khand
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिपय-प्रवेश
बज
में उपलब्ध हरे चारे के अतिरिक्त केवल 1.736 करोड़ टन
दाना तथा 30.89 करोड़ टन सुखा चारा ही प्रति वपं जुट पाता
ड, भारतवपं मे पशधन की प्रति इकाई पर केवल 0.06 हैक्डर
भमि स्थायी चरागाह् के रूप में उपलब्ध है जवकि ऑस्ट्रेलिया
तथा श्रमेरिका के लिये यही झाँकड़े क्मण: 14.59 तथा 2.04
हेक्टर है. भ्राजकल खाद्य एवं अखाय फ्मलें उगायी जानें वाली
भूमि का 4% से भो कम अंश चारा उगाने के लिये प्रयुक्त होता
है जो भारतवर्ष की इतनी वड़ो पश संख्या को खिलाने के लिये
अत्यन्त अपर्याप्त है
ग्रतः यह स्पष्ट है कि पणु संख्या इतनी भ्रघिक होने पर भी
देण की श्रयं-व्यवस्था में पणधन का योगदान उसकी संख्या के
अनुरूप नहीं है. भारतवर्ष कौ कुन राष्टरीय म्राथ का 11.83
पणृधन से प्राप्त होता है. 1960-61 में पशु-उत्पादों से प्राप्त
होने वाली कुल अनुमानित श्राय 1,592.72 करोड़ रु. थी. इसमें
से 988.34 करोड रु. दूध तथा दूघ से बनें पदार्यों से, 120.01
करोड रु. मांस तथा मांस उत्पादों से, 42.8 करोड़ रु. खाल
तया चमड़े से, 66.91 करोड़ रु. मुगियों तथा अण्डों से, 12.74
करोड़ सु. उप तथा वालों से, 262.8 करोड़ रु. गोबर से तया
99.11 करोड़ रु. को अप अन्य उत्पादों से हयी थी.
भारतवर्प में कृपि से होने वाली मूल झाय का 18.3% पशुघन
से प्राप्त होता है. देश को इतनी बड़ी पश संख्या को देखते हुये
यह योगदान काफी कम दै. इतकी तुलना मे यह् श्राय डेनमाकं में
82%, ग्रायरलैंड में 81%, स्वीडन में 79% तथा इगलैड श्र
नावे में प्रत्येक देश से 78% होती है. श्रथी हाल के कुछ वर्पो में
पणग्रो के पवन कौ श्रोर श्रधिक ध्यान दिया गया है तथा देश
के विभिन्न भागों में इस दिशा में किये गये कार्यों से यह स्पष्ट
हो गया है कि यदि पशुद्नों क। प्रवर्धन वैज्ञानिक डंग से किया जाय तो
शारतीयव पशत्रों की उत्पादन-क्षमता में उत्तरो्तर वृद्धि हो सकती है
श्र राष्टीय श्र्यव्यवस्था में उनका योगदान काफी वढ़ सकता है.
1966 में हयी दसवीं पंचवर्पोय .पण गणना के लेखों में भारतवप
को विभिन्न प्रदेशों मे विभिन्न जाति कै पश्र कौ संध्या का
विवरण मिलतादहै. ये ग्रकंडे सारणी 1 मं दिये गये दै
गो तथा मैस जातीय पशु
भारतवेपं मे काफी वदी संख्यामे गो तथा भैस जातीय पश है
1961-62 कौ पशुगणना के श्रनसार गो तथा भेस जारि
पशु पूरे विश्व में 111.5 करोड और भारत में 22.68 करोड
(20.35%) थे. किन्तु पशु-उद्योग का उत्पादन मान इतनी बड़ी
पशु संख्या के शभ्रतुरूप नही है. प्रगातकीय सचिवालध के सांख्पिकी
विभाग के संशोधित ग्राकलन के भ्रतुसार 1960-61 में, धन के
रूप में इसका श्रनुमानित योगदान 1169 करोड़ सु. था
भारत की ग्रामीण झर्य-व्यवस्या में पशुग्रो का योगदान महत्वप्ण है
ग्राज भी कृपि कार्यों के हेतु श्रावश्यक शक्ति वैलों से ही मिलतों
ग्रौर श्रघिकांश लोगों की खुराक से पश-प्रोटीन का प्रमख ख्रोत
इूध ही है. जताई, खुदाई, फल की कटाई, गहाई, सिंचाई के
लिए तथा कृपि-उत्पादों को वाजार तक पहुँचाने श्रादि झ्तेक
कार्यों में वेलों का प्रयोग होता है. इसके अतिरिक्त पश् श्रपने
गोबर की खाद से भूमि को उपजाऊ बनाते है तथा खाल श्रोर
चमड़ा भी प्रदान करते है, इसोलिए भारतवर्ष में गायों तथा
चलो को कपि की झ्राघारशिला माना गया है. भारतवर्ष , म्न्तर्राप्टीय
चाजार् का सवस वटी मात्रा मे खाले तथा चमड़े वेचनता है शरीर
इनकी विकी से कारी विदेशी मुद्रा अजित होती है. पगगम्रों के
ग, युर तया हह्ियां कारखनों मे अ्रस्वि-चणं तया ग्रन्थ सामन
बनाने मे प्रयुक्त होती है - अस्थि-चूणं को खनिज-पुरक के रूप में
पणगु-वाद्यों में मिलाया जाता है भ्रौर उर्वरक के रूप में भी डाला
जाना हैं. पशु-उद्योग छोटी-छोटी असंख्य इकाइयों के रूप में पूरे
देण मे फला हुसा है इसलिये उसका सही मल्पांकन करना काफी
कटिन दह. भारतीय कृपि मे पणुश्रम के खूप मे, पगृधन का एक महत्वपुर्ण
योगदान है. खेती में इस श्रम का अनमानित मृत्य 302 से 500
करोड़ रु. होगा भूमि की उबंरा जक्ति बढ़ाने में पणुम्मों से लगभग
270 करोड़ रु. को मुल्य की सामग्री मिलती है
भारतीय पणुम्रों में अनावृप्टि, पण-प्लेंग तथा किलनियों से
लगन बाल रोगा नी प्रत्ति प्रतिरोध शक्ति होतो है. इससे विदेणो
चाजारा में रनका चहुन अच्छा मान है. इसो कारण यूरोपीय
पशपालकों नें भारतवर्ष के ककुदधारी देशी ढोरों (जेवू पशुस्रों )
का प्रयोग' अपने यहाँ के पशुश्रों से संकरण करने के लिये क्रिया
जिससे श्रौर भी भ्रच्छे पशु पैदा हो सकें जिनमें भारतीय पथुस्रों
की सहिष्गत। तथा सोगप्रतिरोघ क्षमता न्रौर यूरोषोप पुरो
की उत्पादन क्षमता हो. ऐसा करने से यह पता लगा कि भारतीप्र
पशुश्नों के 20% प्रमेंद उनके शरीर में पटुंचकर उन्हें उप्ण-
कटिबन्धीय वातावरण की विपमताश्रों में रहने के योग्य बना देते हैं
भारतीय ककुदघारी पशु, चॉस इंडिकस लिनिग्रप्त बिल, गाय,
गऊ, ढोर, डांगर (सींग वाले पणु), दुधार (दूध देने वाली गाय )
(कुल बोविडी, उपकुल बोविनों ) यूरोप श्रौर उत्तरी एशिया के पालतू
पशत्रों से शारीरिक बनावट, रंग तथा स्वभाव में शिनन होते हैं. इनका
मुल निवास स्यल भ्रज्ञात है किन्तु ये श्रफीका के जन्मजात जान पड़ते
हैं. भारतीय जन्मजात गो-पशुत्रों के पूर्वेजों की श्रभी तक कोई खोज
नहीं हो पायी है श्रौर उनका कोई जीवाश्म श्रमी नही मिन पाथा
है. भारत के ककुदधारी पशु प्राय: खूँख्वार हो जाते हूं. यहाँ गो-
पत्रों का पालना वहत ही सम्मानित व्यवधाय माना जाता है
तथा इनसे प्राप्त दूध, मक्खन, पनीर श्रादि पदार्थो को समी वं
के लोग उपयोग में लाते हैं. देश के विभिन्न भागों मे पालतू
गो-पणश्रों की श्रनैक नस्ते पायी जती हं कि
1961 कौ पशु-गणना के अनुसार भारतवप म 15.23 कराड
हेक्टर् कृषि योग्य भमि के लिये 8.04 करोड गो तथा भन जाताय
पण् ये. तीन वपं से अधिक ग्रायु वाली 5.1 करोड़ गाध तथा
2.423 करोड भैंसों को प्रजनन तथा दूध-उत्पादन के लिये
रखा गया था. इनमें से 2.07 करोड़ गाथे तथा 1.25 करा
भैसे दूध देती थीं तथा शेप या तो सूखी थीं अथवा एक वार भा
नहीं ब्यासी थी. सारणी 2 श्रौर 3 में 1966 का गौ तथा भन
जातीय पशत्रों का प्रादेशिक वितरण दिखाया गया है. 1956 प्रार्
1961 के वोच भारतवर्प में गो तथा भैंस जातीय पणुस्रा के
संख्या में क्रमण: 10.7 तथा 13.9% की चुद्धि हुयी थी. 1961-
1956 कौ झविें यो जातीय पणुत्ों की संखछया में कोई परियतन नहीं
User Reviews
No Reviews | Add Yours...