वर्ग चेतना का आद्यंत | Varg Chetna Ka Aadhant

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Book Image : वर्ग चेतना का आद्यंत  - Varg Chetna Ka Aadhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वैसे भारतीय दर्शनो का नामाकन व्यक्तिपरक की नही दिखाई देता-- जैसे दर्शन की पहचान साख्य से हैन कि कपिलवाद से इसी तरह “लोकायत योग , ^न्याय', मीमासा' वेदान्त' अनेकातवाद या स्याद्वाद (जैन दर्शन) “सम्यक्‌ समुत्पाद' (बौद्ध दर्शन्‌) आदि की पहचान उनके प्रणेता के नाम से नही बल्कि चिन्तन-केन्द्र पर है ¡ “गॉधीवाद” कहने से हमारे ध्यान मे स्त॒ सशक्त अहिसा ओर असहयोगात्मक सत्याग्रह प्रमुख विचारबिन्दु आ जाते है। एकं ओर विडम्बना यह भी है कि 'माक्सवाद' के साथ लेनिनवाद स्टालिनवाद माओवाद ओर जोड दिया गया जिससे माक््सवाद' एक ऐसी बेमेल खिचडी बन गयी एक अजीव-सी रस्साकसी। मेरी मान्यता है कि मार्क्स के साथ प्रतिष्ठित होने का एकमात्र हकदार है तो केवल उसका समकालीन सहधिन्तक अभिन्न सहयोगी सघर्षशील--फ्रेडरिक एगेल्स ही है। अन्य कोई नही। इसलिए मार्क्सवाद' ही अगर मान्य हो, जो हो चुका और है भी तो काल ओर परिस्थितियो के अन्तराल ओर उनकी भिन्नता को दृष्टिगत रखते हुए अन्य वादो को जोडना तर्कहीनता का परिचय देना होगरा। लेनिन स्टालिन ओर माओ भाष्यकार ओर बलिदानी युगपुरुष हो सकते है- लेकिन दार्शनिक दन्द्रात्मक भौतिकवाद ओर एतिहासिक द्रन्द्रात्मकं भौतिकवाद के प्रणेता कार्ल माकसं ओर फरेडरिक एगेल्स के समकक्ष नही। सार्वत्रिकता को परिधियो मे नी समेटा जा सकता। कार्ल माक्स की सबसे बहुमूल्य रचना है-- पूजी । इसकी रचना मे मार्क्स को 20 साल तक अथक परिश्रम करना पडा। इसका पहला खण्ड मार्क्स के जीवनकाल मे ही प्रकाशित हो चुका था, वे दूसरे खण्ड की पाण्डुलिपि तैयार कर चुके थे लेकिन वे उसकी प्रकाशित प्रति नहीं देख सके । तीसरे खण्ड के लिए उन्होने नोट्स लिखे थे। एगेल्स को पता था कि उसके अभिन्न मित्र की यह अन्तिम आकाक्षा थी कि वे इसकी पाण्डुलिपि तैयार कर देते लेकिन वे ऐसा न कर सके। मार्क्स की पूँजी के इस तीसरे खण्ड को लिपिबद्ध करने ओर प्रकाशित करने का गुरुतर दायित्व एेल्स ने वहन किया। एगेल्स के लिए सबसे बडी अड्चन थी मार्क्स के नोट्स की लिखावट को साफ-तौर पर समझ सकना क्योकि मार्क्स की लिखावट अस्पष्ट, साकेतिक ओर अक्षरो की बनावट महीन से महीन होती थी। एगेल्स ने अपने अथक परिश्रम से रात-दिन एक कर अपने जीवन के आखिरी सात- आठ सालो मे उसे लिपिबद्ध किया प्रूफ देखे ओर उसे प्रकाशित करवाया ! प्रवर्तन वर्तन॒ 15




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