श्रृंगार - शतक | Shringar Shatak
श्रेणी : पौराणिक / Mythological, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.95 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
महाराज भर्तृहरि लगभग 0 विक्रमी संवत के काल के हैं
ये महाराज विक्रमादित्य के बड़े भाई थे और पत्नी के विश्वासघात
के कारण इनमे वैराग्य उत्पन्न हुआ
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व द म्यज्ञार-शतक १३ चब्चल अचपल मेंटके-चटके सर .खोले-ढाँके हूँस--हूँस के । कह-कंह की हँसावट और गजूव ठठुठों की उंडावट वैसी ही ॥७॥ हर वक्त फबन हर आन संजै दस-दम मे बदलें. साख सजे । बाहौ की झपट रू घट की अदा जीवन की दिखावट वैसी ही ॥८॥ पाठक । मनचले पाठक आप ही विचारिये इन आन-वान भर सूवसुरतीवाली को कौन-श्रुल सकता है जो इन स्त्ी-रतनो की कट्ठ जाननेवाले हैं उनकी नजरों से इनके नीलकमल की भाभा रखने वाले-नीलम-से नेत्व-कभी उतर ही नहीं सकते । उन्हें तो हर भोर नीलम या भीलकमल ही नीलकमल फूले दीखते हूँ और वे मन-ही-मन उनकी अनुपम छटा को याद कर-करके-प्रसन्न होते हैं । गए ता भय नर के ही कलह सौह्ट को भग+ कवह लज्जायुत...दरसत । - ₹ ८ ४. केवहुक/ससकत संकि क़बह लीलारस वरसत़ 1 +. हग + - नैलहुक-मुख मुदुहास कबहुः हितदबचन उन्ाइत ॥ 5 7 । - कवहुक लोचक्त. फेर चपल चहु -ओर निह्मस्त-। ५ + १ छिन-किन्त सुचसिल्न विचित्र कृषि भरे कमल -जिस़ि दशहू दिशि ॥ ऐसी अत्रुप नारी निरखि हरषत इखिये दिवस--र्तिशि ॥४॥ £ सार-+-जिस तरहाश्रह्मज्ञानियो को। हर ओर न्रहमदही-ब्रह्म दीखता है उसी तरह कामियो क्रो हर ओर नवब्रघुओ के नील-कमल के समान न्नन्नल् जेत्रम्ही-नेत्र दीखते है । जिसकी अआपो मे तुजो सभा जाता है उसेःवह्दी-वह दीखता है।. -५ हा व... ससिकर नशा्ि-लिंढ-प्पापप्राइ -फहा- 9कूपथि - णिण्णाइ जा जाए पड़ ईध्ण6 छ8 8णि पाट55 . जा 18. साधियाल स्क्रिपिघिह55 थाते सिवा जा हटा एंविशपा ध5 पाट5 घ6 8८6... 08 भणणाछट फ़णा8ा विश है पशु ठप. करो डा . प्र्ंकड सुएडी- ८8पणाई ब00685 परत? हज भावँ। छावटाए छििटड पिला कप 10 दर हे हे. परेड सिनंत सि.रिनक्वाउ डाक उप
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