भारत में उद्योगों का संगठन , वित्त व्यवस्था एवं प्रबंध | Organisation , Financce & Management Of Industries In India
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
884
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[६
(८) कपि की उ्तति-- श्नौयोगीकन्णा की गति दपि उत्पादन की दर से भी
प्रभावित होती है, क्योकिटेपिसेही धद्येगो के लिये मुस्य बच्चे माल प्राप्त होते है ।
कपि उत्प!दन में तुरन्त या अचानक वृद्धि नहीं की जा सकती है । «
(४) मानवीय साधन--मौद्यािक विकास की गति समाज द्वारा झ्पने रहन-
सहन के ढग मे व सम्बन्धों और स्थितियों में भ्रावश्यक समायोजन कर सकने की
क्षमता से भी सीमित होती है । यदि देश भे पर्याप पूजी उपलब्ध हे, किन्तु जनता मे
उसके प्रयोग करने की योग्यता नहीं हैं, तो द्योगेकरश की गति तेज नहीं हो
सकती है 1
श्रोद्योगौकररण के लाभ
वर्तमान श्रौद्योगिक घुग में झौधोगीकरण की महिमा के विपय मे जो कुछ
भी कहा जाय, कम ही होगा । श्रौद्योगीकरण किसी भी राष्ट्र की प्रायिक समृद्धिके
हेतु 'सजीवनीः द । इसके द्वारा बैवल भ्राधिर विकास ही नही, वरन् सामाजिक एव
राजन तक प्रगति भी सभव होनी है । श्रौद्योगेकरण के कुछ प्रमुख लाम
निम्नलिखित है--
(१) उत्पादन शक्ति मे वृद्धि- [ मम
किसी भी देश की उत्पादन-शीनतां १. उत्पादन दाक्ति में वृद्धि ।
को बढाने का एकमात्र साधन तीदं . राष्ट्रीय ग्राय में वृद्धि
आऔद्योगीकरण ही है। विश्व का वर्तें
मान आाधिक विकास इस बात कां
साक्षी है कि जिन देशों ने श्रौद्योगी-
करता को अपनी ग्राधिक समृद्धि का
आ्राघार माना है, वे ही आज प्रगति सभावना 1
की पराकाष्ठा पर पहुँचे हुए है। | ६. पूजीके निर्माण मे वृद्धि।
५ ५
कृषि पर जन-सस्या के भार
में कमी ।
४, रोजगार के साधनों में वृद्धि । |
[५
सतुकल्लित आर्थिक विकास कौ
श्रौद्योगीकरण के नारे से समस्त देश श्रमिकों के रहन-पहन के स्तर ¢
मे एक चेतनता पैदा हो जाती है, मे वृद्धि । (||
जिससे उत्पादन शक्ति कौ वृद्धि में जनं सावार्ण के जीवन स्तर
बडा योग मिलता है । में वृद्धि ।
(२) राष्ट्रीय श्राय मे बुद्धि कर-देय क्षमता मे वृदि }
उद्योग घन्घों के विकास से राष्ट्रीय १० राष्ट्रीय व श्रन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
आय मे वृद्धि होना स्वाभाविक हीं मे वृद्धि 1 ॥
है । उदाहरण के लिये, भारतवर्ष की १३ राष्टीय चरित्र कानिर्माण ) ॥
ही लीजिये, सन् १६५०-५१ मे ट्मायी = (लः
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