भारत में उद्योगों का संगठन , वित्त व्यवस्था एवं प्रबंध | Organisation , Financce & Management Of Industries In India

Organisation , Financce & Management Of Industries In India by डॉ० एस० सी० सक्सेना - Dr. S. C. Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६ (८) कपि की उ्तति-- श्नौयोगीकन्णा की गति दपि उत्पादन की दर से भी प्रभावित होती है, क्योकिटेपिसेही धद्येगो के लिये मुस्य बच्चे माल प्राप्त होते है । कपि उत्प!दन में तुरन्त या अचानक वृद्धि नहीं की जा सकती है । « (४) मानवीय साधन--मौद्यािक विकास की गति समाज द्वारा झ्पने रहन- सहन के ढग मे व सम्बन्धों और स्थितियों में भ्रावश्यक समायोजन कर सकने की क्षमता से भी सीमित होती है । यदि देश भे पर्याप पूजी उपलब्ध हे, किन्तु जनता मे उसके प्रयोग करने की योग्यता नहीं हैं, तो द्योगेकरश की गति तेज नहीं हो सकती है 1 श्रोद्योगौकररण के लाभ वर्तमान श्रौद्योगिक घुग में झौधोगीकरण की महिमा के विपय मे जो कुछ भी कहा जाय, कम ही होगा । श्रौद्योगीकरण किसी भी राष्ट्र की प्रायिक समृद्धिके हेतु 'सजीवनीः द । इसके द्वारा बैवल भ्राधिर विकास ही नही, वरन्‌ सामाजिक एव राजन तक प्रगति भी सभव होनी है । श्रौद्योगेकरण के कुछ प्रमुख लाम निम्नलिखित है-- (१) उत्पादन शक्ति मे वृद्धि- [ मम किसी भी देश की उत्पादन-शीनतां १. उत्पादन दाक्ति में वृद्धि । को बढाने का एकमात्र साधन तीदं . राष्ट्रीय ग्राय में वृद्धि आऔद्योगीकरण ही है। विश्व का वर्तें मान आाधिक विकास इस बात कां साक्षी है कि जिन देशों ने श्रौद्योगी- करता को अपनी ग्राधिक समृद्धि का आ्राघार माना है, वे ही आज प्रगति सभावना 1 की पराकाष्ठा पर पहुँचे हुए है। | ६. पूजीके निर्माण मे वृद्धि। ५ ५ कृषि पर जन-सस्या के भार में कमी । ४, रोजगार के साधनों में वृद्धि । | [५ सतुकल्लित आर्थिक विकास कौ श्रौद्योगीकरण के नारे से समस्त देश श्रमिकों के रहन-पहन के स्तर ¢ मे एक चेतनता पैदा हो जाती है, मे वृद्धि । (|| जिससे उत्पादन शक्ति कौ वृद्धि में जनं सावार्ण के जीवन स्तर बडा योग मिलता है । में वृद्धि । (२) राष्ट्रीय श्राय मे बुद्धि कर-देय क्षमता मे वृदि } उद्योग घन्घों के विकास से राष्ट्रीय १० राष्ट्रीय व श्रन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आय मे वृद्धि होना स्वाभाविक हीं मे वृद्धि 1 ॥ है । उदाहरण के लिये, भारतवर्ष की १३ राष्टीय चरित्र कानिर्माण ) ॥ ही लीजिये, सन्‌ १६५०-५१ मे ट्मायी = (लः ¦ भ छ आ 0




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