सयाजी चरितामृत | Sayaji Charitamarit
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
भाषा में यह पहिला ही पुस्तक है जिस में हिन्दी जानन वा लेविद्वानें!
तथा जिज्ञासुओं को भारतवर्ष के अद्भुतरत्न, सचेदेरहितैषी, महा-
विद्वान्, राज्य धर्मनिष्ठ, प्रनाहितकारी, विद्याप्रचारनिरत, धीर, वीर, `
गम्भीर्, तपस्वी, परतापी, उन्नतश्चीर, राजिं श्रीमन्त महाराजा सयाजी-
राव गायकवाड़ सेना खास खेर शमरेर बहादुर के उच तपोमय तथा
अनुकरणीय जीवन के अनेकविष दश्य भिटैगे. श्रीर्भत महाराजा
साहब की सतसेद्सहिष्णुता, तत्वग्राद्यता, हार्दिक
उदारता संकल्प दृढदता आदि अनेक सानसिक महान
गुण जो एक राजर्षि में होने चाहिये वह इस पुस्तक
के एाठ करने से वाचक चन्द् को मानसिक बक पदान
करेगे. जाप ने इख पुस्तक को ऐसी सरल तथा ललित
माषा में लिखा है कि इस को पढनेवाला समाप्त किये
दिना नहीं रहेगा. हिन्दी भाषा में ऐसे परोपकारी नरेश की जी-
वमी) का होना अल्याउश्यक्त था कि निप ने अपने राज्य भर की. समग्र
पादशाठाओं में दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी का भचार कर रक्वा
है, और इस भारी कभी को आप ने उत्तमता से पूर्ण किया है
जिप के छिये मैं आप को मंगछू वाद देता हूं”
॥०॥
३--ज्वाछापुर महाविद्यालय के अध्यापक विद्वद्वर्य श्रीमानु
पंडितप्रवर भीमसेन जी शर्मा लिखते है किः--
“ सबंस्मिू भूमिमण्डले सोजन्योदार्य विद्याविलासिता प्रजा-
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नियतादि त्रिविध गुणगुणैरेल्यातमहिमा श्रीमान् नृपचक्रचूडामणि
५१५ । 4
वैडोदाधिःतिः श्री प्रयाजीराव गायकवाड महोदयो वतमान
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नृपाणामादशेभूत एवेति सुभरथितं देशदशां पदर्यतां विदुषाम् ।
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