कुछ | Kuch

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Kuch by पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी - Padumlal Punnalal Bakshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रामलाल परिडित ११ सीता नौर लक्ष्मण को लेकर रामचन्द्रजी अपनी -साताः“कौशस्या से निदा माँगने के लिए गये । उस समय साता कॉशल्या ने जो कटा, उसे एक कवि ने यो लिखा है - जनकटुलायी सुङ्घमायी दै सकल अङ्ग, मेरी नैनतारी नेक न्यारी मत कीजियो | बन विकराल बाघ व्याल है कराल लाल चाल लद्िसन काहू काल न पतीजियो ॥ सीत घाम मेह सो बचेयो देह कोमल ये, जानि जिय नेह वेगि गेह सुधि लीजियो । घ्याति-जाते हाथन दमेंस हित मान मेर, एरे प्रानप्यारे पृत्त पाती नित भमेजियो ॥ उस रुूमय खडी बोली की कथितादओ का आरम्भ हुआ था । - परिडितजी न्रजभाषा के पक्षपाती थे । खड़ी बोली की ककशता उन्हें झसद्य थी । पर मै तो नवीनता कां समथंक था 1 काव्य- साहित्य का ज्ञान न होने पर मी से खड़ी वोली की कबिता ओं;- को किसी प्रकार -हीन सानने के लिए तैयार न था} नवीनता की चर सभी तरुण का जे ऋषरह्‌ सत्ता है, वह सजे सी था) कुछ समय पहले छायावाद श्रौर मधुवाद्‌ के सम्बन्ध मे नवयुवको का जितना इर्ाह्‌ थ।, उनसे कम उरसाह मुखे नदी था ¡ आजकल ननिराला' जी 'कुकुरमुत्ता' द्वारा नवयुवकों को जो 'शाक' दे रहे है, वही शाकः हम लोग शङ्करजी की कविताश्रो में तव पातत थे। भ्भिभ्रीमे बोसखकी फस की तरह उनकी रचनाओं में मघुरता के साथ कठोरता का जो सस्मिश्रण था, उसने दस लोगों को भुग्ध कर लिया था । खडी चोली के उस प्रारम्भिक साहित्य में हम ल्लोय भाषा की श्कृतिमता क साथ भावों की सरलता




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