दशकुमारचरित | Dashakumaracharit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ०५
चरित्र-चित्रण यद्यपि श्रपने विशेषटंगकारटहै, फिर भी वह् महत्वपूर्ण है ।
,कथा-प्रवाह् चलता है श्रौर उसमें भ्रन्तकंधाएं भी प्रन्तभुक्त की गर्द हैं ।
इसमे न केवल समाज के निम्नवमगें का चित्रण दहै, वरन् हमे समस्त सामंतीय
जीवन श्रपने काफो विस्तार के साथ दिखाई दे जाता है । राजा, प्रच्छा राजा,
बुरा राजा, चापलूर, चोर, सिपाही, गणिका, श्रधविश्वासी, धूते, जुभ्रारी,
-सपेरा, मांतरिक, सिद्ध, वरय, शूद्र, गरीब, श्रमीर, विलासी, जादूगर, युद्ध नाश,
अकाल, जासूस, श्रराजकता श्रौर ऐसे ही अनेक लोग भ्रौर दृश्य दिखाई देते
हैँ । इन सबका यथार्थं चित्रण हुमा है। इसको पढ़कर पता चलता है कि उस
समय का श्रादमी बडा “'उस्ताद' होता था भ्रौर प्राचीन भारत में सब कुछ
अच्छा ही श्रच्छा नहीं था, वरन् यहां काफी बुराइयां थीं । संस्कृत के श्राचार्यों
ने एसे ग्रंथ को इतना महान् कहा, यह बताता है कि उस समय बुराइयों की
पोल खोलने पर शास्त्रीय ढंग से प्रतिबंध नहीं थे । नाटक में अ्रवद्य कुत्सित
दुह्य नहीं दिखाए जति थे क्योंकि उसमें दशंक के मन पर सीधे ही बुरा प्रभाव
पडता था, कितु श्रग्यकाग्य में एषी कोई रोक-टोकं नहीं थी । परवर्ती काल में
इस यथाथं पर रोकनटोक लगाई गर्ईथी जो दूसरे दण्डी के काव्यादशं से प्रकट
होता है । परवर्ती काव्यों में हमें सामतों के जीवन पर ऐसा गहरा प्रहार नहीं
मिलता जैसा यहां है । प्राचीन समय में राजा श्रावइ्यक होता था, क्योकि
श्रराजकता बहुत भयानक वस्तु थी, कितु सामंत का व्यक्तिगत जीवन जनता के
लिए विशेष महत्वं नहीं रखता था । एेय्यारी भ्रौर लडाई, सामतो केयहीदो
कामये प्रौर इसीलिए दशकुमारचरित के लेखक ने मिल-जुलकर राज करने
-का उपदेश दिया है, जिसमे केन्द्रीय सम्राट् किसी भी राज्य पर जोर-जबर नहीं
करता । चातुवेण्य की उचित मर्यादा को पाला जाए यह भी लेखक का एक
-स्वप्न है ।
सबसे बड़ी बात इस प्रंथ में है इसका मज़ाक । बड़ी ही चुभीली चोटें की
गई हैं श्रौर मजाक-मज़ाक में ही लेखक बड़े-बड़ों को नहीं छोड़ता । प्राय: हर
कुमार जिस तरकीब से काम लेता है, उसमें हंसी श्रवद्य शभ्राती है, चाहे वह
'जुग़ुप्सा ही क्यों न पैदा करे । चंद्रसेना को ऐसा भ्रंजन मिलने को होता है कि
“वह बंदरिया नज़र ध्ाए श्रौर नतीजा होता है कि अ्रंजन देने वाला ही समुद्र में
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