वनौषधि विज्ञान भाग 1 | Vanoshdhi Vigyan Bhag 1

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Vanoshdhi Vigyan Bhag 1  by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वनौपधिविज्ञान. क ड़ हैं, उनपर धरीहुई कोई तवीज खादेसेभी जहर त्वदजाता है. गौ-मैंस जादि -. जानवर कहीं भूठसे इनको त्रिशेषतासे खाजांय ते उनको जहर «चढ़कर मृत्यु होती है. भंग्रिजी उद्धिग्नशालियेनिं वनस्पतियोंके जो वर्ग किये हैं उनमेंसि उ०्कगां॥०७0. ' ठोगेनियेसी * नामक वर्गमें कुचटेका अन्तर्भीव होता है, ' - कुचटेका बीज चवानेसे वहुतद्दी कड़वा छगता है. उसमें एक क्षार घी ( शॉहिगोणत $ सतत ( ध्मश्व८ ) रहता है, जिसको ',अप्रिजीमें गुणों. ह्ट्रिकनीन कहते हैं. उसीके सबवसे यह कडुब्रापन रहता है, यह स्ट्रकनीन सत्त वडाभारी जहरी है. ( इसके सियाय औरभी एक मूसीन नामका सत्त-फी सेंकडा १९ से १-इस प्रमाणमें इसमेंसे » निक्रठता है, » रिट्कनीनका असर ऐस्छिकगतीकी रगेपर और मज्जाजादफ ऊपर इसतरद ज्दसि होता है कि उससे हाथ जोर पैरॉकी रगें अकड जाती हैं सर दरीरकी हाठत धनुस्तम्मकी ( (०ग्गण5 ) सी होजाती है. कुचलेके याजोंकी चुकणी करके बह ' मयुके तीत्र अर्कमें ( र००पिपिश्ते हुए के पचाकर उसकी रासायनिक क्रियासे परीक्षा करनपर उसमेंसे सेंकडा पांच ठके सच छेंगिवीन और शर्करायतू &81०००५०० . मिठ्ते हैं. ह्ट्रिकनिया के जहरका, जसर शरीर प्रथम रक्तके द्वारा होकर मत्तिप्कके ततु और यंशगत मस्जातेतु (6एणी गश्तर०्ड इनको तीन चेतना उत्पन होती है. उससे प्रथम ऐस्छिक गतीकी रगोंकी खिंचागट होकर वह रुक जाती हैं. और उसके याद एकवारगी दृदयकी गति बंद होजाती है, (. हँशप्राह 01 कलपारिड गण 3 अत मृत्यु होजाती हे, न स्ट्किनिया ( फुचटेका सत्त » आधा मेन यानी पा रत्ती कमसे कम देनेसे मृत्यु होता दे. पेटें जानेकबराद २०. मिनिटके जेदर आदमी मो. हु देखनेमें आते हैं. * शेपके * नामके एक जर्मन डॉक्टरनें जमलीकि एक अस्पताठ्म ५ श्रेनतक स्ट्रिकनिया खाकर थचे हुए कई आदमी देखे थे पेसा डॉक्टर चूड दिखते है. परंतु इसपर इम अनुमान करते हैं. कि उन, आदमियोंने ऊपरने कुछ इसप्रकारके फठ खाठिये. हेंगि कि जिनकी




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