तत्त्वार्थवार्तिकम् | Tattvarthvaartikam

Tattvarthvaartikam by महेन्द्रकुमार जैन - Mahendrakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय पगलाचरणसूत्रकारे मागका दी क्यो उपदेश दिया !मीत्तका ग्रस्तिव्य निरूपणबन्घका कारण बतलाकर ही मोक्तका कारण ब्रतलाना इए हैमोक्तमागेका स्वरूपसम्यग्दशंनका स्वरूपसम्यक्रचारित्रका स्वरूपमम्यग्ञान श्रादि शब्दौकरी व्युत्पत्तिग्रात्मा शरोर जान श्रादिका एकान्ततः मेदामेद पन्तका खण्डन शरीर कथंचिद्‌ भेदभैद्‌ पक्त्‌का स्थापनममवायप्तभ्वन्धका निपेधपयाय द्रौर पयायीम कथंचिद्भेदाभेद का निरूपणसूत्रस्य ज्ञानादि पोका पौर्वापर्य विचारमोक्तके स्वरूपक्रा वणनमागंशब्दकी व्युत्पत्तिसांख्य, वैशेपिक, न्याय तथा बौद्धमत- सम्मत मीक्षकारणका स्वरडन करके जैन मतानुसार सम्य ग्दशंनादिकी मोत्त-कारणताकानिरूपण ज्ञानसे ही मुक्ति होती है इस मतका खण्डनशान आर दर्शनकी युगपत्‌ प्रवृत्ति होनेसे उनके एकत्वका परि्ार'तत्त्वार्थवार्तिक विषय-सूचीमूल पष्ठ दिन्दी प्र९१ -- ~<. <)० ० ^ «रब०१०१११६९६५ २६५ २६५२६६ २६६ २६६ २६५७ २६७२६९ २६६ २९६९ २६६शाज्ञान श्रौर चारित्रमँ कालभेद न होनेसे उनमें श्रमेद है इस मतका परिहारसम्पग्दशनादिमं लक्षण मेदसे वे मिलकर एक मांग नहीं हो सकते इस शंकाका समाघानम्यग्दशन श्र सम्यरज्ञान तथा सम्यगजान आर सम्यकचारित्रभं धिनाभावका निरूपणसम्यग्दरानका लखणसम्यक्‌ शब्दकी निरुक्रि ग्रोर उसका श्रथदशन शब्दके अरथंका विचारतच्व शन्दके श्रथंका निरूपणत्वां श्र श्रद्धान शब्दकी निरुक्कि व श्रथनिरूपण'तत्वार्थश्रद्धान॑ सम्यग्दरशनमू” इस सूत्र मे तच्च श्रौर श्रथः पके प्रदणकी साथ॑कताश्रद्धानका ग्रथ इच्छा दोषापत्तिसम्यग्दर्शनके भेद श्रौर उनका लक्षणसम्यग्दश्तंनको उस्पत्तिके प्रकारमाननेपरनिसर्गं शरोर श्रधिगम शब्दकी निरङ्किसम्यग्दरशनके निसर्गज शरोर श्रधिगमज ये दो मेद माननेपर श्रनेवाले दोपरौका परिहारसूत्रम श्वि हए ततत्‌? शब्दकी सा्थ- कतांमूल प्रष्ठ हिन्दी पठ १७ २७४ १५. २५५ १५ २५५ १९ २७६ १६९ २७६ १९ २५५९ १६ २५६ १६९ २५९ १५ ९७५ २१ २७५५८ २९ २७८ २२ २७८ ९९ २५७८ २२ २७८ २१४ २७६




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