बंदी जीवन भाग १ | Bandi Jivan Bhag-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.01 MB
कुल पष्ठ :
125
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वन्दी -जीवन १५
कई स्थानों में घूम कर अन्त में रासविददारी ने काशी में
रहना स्थिर किया । वे काशी में मेरे साथ प्रायः एक वर्ष तक रहे
| उस समय उन के संसर्ग से मैंने जो आनन्द पाया था उसे मैं भूख
नहीं सकता । इतने अरसे में सैंने उन को शायद कभी भी दुखी
नहीं देखां । हां, जिस दिन दिछी पद्यन्त्र के मुकुदमे के फेसछे
के अनुसार चार व्यक्तियों को फांसी का हुक्म हुआ उस दिन
एंकान्त में उन को अश्रुपात करते देखा था ।
रासूदा जितने दिन काशी में रहे उतने दिन भारतवर्ष के भिन्न
मिन्न स्थानों के छोगों को उन से मिठते देखा था । राजपूताना
पंजाब और दिल्ली से लेबर सुदूर पूवे बंगाल तक के छोग उन कें:
पास जाते थे । वे जब तक काशी में रहे तत तक युक्तप्रदेश त्तथा
पंजाब के मिन्न मिन्न स्थानों में विप्टव केन्द्रों की स्थापना में लगे
उसी का यह परिणाम हुआ कि एक ही वर्ष में हमारा
शक्तिशाठी हो गया ओर उसी का यह फल था कि
योरोपीय महायुद्ध जब प्रारम्भ हुआ त्तत दम खूब ज़ोर से काम
कर सके थे ।
सन् २९१५ भारत में चिरस्मरणीय रहेगा । इस साछ
विश्व को जितनी बड़ी तैयारी अकारथ गई उननी बड़ी
तैयारी सब ५४ के गदर के पथात्, पंजाब में कूका-विद्रोह
के सितरा और हुई कि नहीं इसमें सन्देद है । इस पढयन्तर
कारी दल के गिरफ्तार हो जाने पर “भारतरक्ा” कायून गढ़ा
गया था । उस समय के होम-मेम्बर फ्रेडक साहब ने, भार-
त्तीय व्यवस्थापिका सभा में उक्त कानून का प्रस्ताव उपस्थित
करते समय जो चक्तृता दी थी उस में कहा था ---''एए० 980
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